28 दिस॰ 2010

अघोषित आलसी का इकबालनामा

उफ्फ़, कहाँ से शुरू करूँ........ सर्दी बहुत है, आलस का समय है....... रजाई प्रेम बहुत ज्यादा है ....... घर में ही बैठकर कोहरे के बारे में सोचता हूँ, ...... गाँव में सरसों बढ़ रही है.........  पानी लग रहा होगा..... बाजरे की रोटी ... सरसों के साग के साथ गुड या फिर लहसुन की चटनी और बथुए का रायता... सब कुछ रजाई में बैठ कर ही याद आता है.... ये आलसपन की हद है........ १०० किलोमीटर दूर गाँव जाने से भी कतरा रहा हूँ........ आश्रम में, मेरी जोगन (श्रीमती) को भी सुनाम-पंजाब जाना है – उसकी तैयारी अलग से है– कब छोड़ने जायूँगा..... कुछ पक्का नहीं है........

बहिन घर में रुकने आई है .... स्कूल की छुट्टियाँ हो गयी है और बच्चों की मस्ती चल रही है, ......... त्यौहार का वातावरण............ कितना बढ़िया लग रहा है......... सबसे छोटी भांजी ने तो मुझे नानू कहना शुरू कर दिया है....... और मैं दिमागी रूप से उम्र का एक और पड़ाव पार कर रहा हूं.......


उधर प्रेस में कार्य का सलाना दबाव है........ ६ तारीख तक एक और मैग्जीन छाप कर देनी है....... अभी डिज़ाइन भी शुरू नहीं किया....... राम जी खैर करे.........

और इसी सब के बीच चिटठा जगत के मित्रों से दूरी ......... आलस्य भारी पड़ता है.... सभों और. आज सीट पर बैठे है तो देखते है सभी भाई लोग कार्यशील हैं..... एक मुझ आघोषित आलसी को छोड़ कर ....कहाँ से शुरू करूँ...... किस ब्लॉग पर पहले जाऊ.... क्या पहले पढूं...... सभी तो मनपसंद है.... पोसिशन उसी सावन में गधे जैसी........... पुराने दिन याद आते हैं, ऐसे लगता है...... १ सप्ताह स्कूल नहीं गया........ होम वर्क बहुत रह गया है... कौन से सब्जेक्ट पहले कवर करूँ....... इसी उहापोह में कुछ भी नहीं करता था..... और बस सरजी के २ थप्पड़ का इन्तेज़ार रहता था...... वो मुहं पर पड़े और दिल को करार मिले....... बुद्धि बहुत थी, अत: सोचता था कि  जरूरी नहीं है कापी भरना..... सो मत भरो... बस थप्पड़ से बचने के लिए ही तो भरता था..... दिल-दिमाग तो वैसे ही पढ़ाई से कोसों दूर रहता था....... राम जी, इतनी बुद्धि के साथ साथ थोड़ी सद्बुद्धि भी दे देते...... पर अब ऐसा नहीं है... पढ़े-लिखे विद्वान ब्लोगर भाइयों का साथ है, ..... जो पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया आज इन्ही सब के बीच पूरी करने का प्रयत्न करता हूं.


रविवार को संजोग से पुस्तक मेले के दर्शन भी कर आया...... और कुछ किताबें भी खरीदी – उसमे सबसे उल्लेखनीय ....... आवारा मसीहा....... पिछले कई वर्षों से पढ़ने की सोच रहा था. छोटे बहनोई (सुनील जी) साथ थे...... गेट पर हेलिकोप्टर (बच्चों के खिलौने) बिक रहे थे ७५ रुपे का एक..... जब तक मैं टिकट ले कर आया तो सुनील जी ने भाव बनाया.... १०० के ४. मैंने मना कर दिया कहाँ अंदर ले कर घुमते रहेंगे....... राकेस (खिलौने बेचने वाला) का मुंह उतर आया.... अंकल जी आपसे ही बोहनी करनी थी...... रेट भी ठीक लगा दिए..... मैंने २० रुपे उसे दिए...... भई जब बाहर आयेंगे तो ले लेंगे.... और हम लोग अंदर चले गए..... बाहर लौटे तो ७ बज़ रहे थे..... और खिलोनेवाले को भूल गए थे..... पर वो हमारी इन्तेज़ार में बैठा था..... सारा सामान समेट कर. भागता भागता पीछे आ गया..... बोला अंकलजी खिलौने नहीं लेने...... मैंने फिर मना कर दिया....... बोला अपने पैसे वापिस ले लो... आपके इन्तेज़ार में इतनी सर्दी में बैठा हूँ......... उसकी इमानदारी ने सोचने पर मजबूर कर दिया..... सर्दी और कोहरा बहुत था, सही में वो जा सकता था.... .. सुनील जी ने उसे १०० रुपे और दिए ...... और हेलीकोप्टर घर को तहस-नहस करने घर आ गए........ राकेस तुम्हारी इमानदारी को प्रणाम

चलता हूं, जय राम जी............... आप लोगों के ब्लॉग पर .......

26 टिप्‍पणियां:

  1. लगता है बाबा जी को जोर की ठंडक लगी थी............. कोई नहीं आराम से होम वर्क करते रहिये.......... शुभकामनायें. गुब्बारेवाले की इमानदारी को प्रणाम....

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  2. अरे हमारी टिप्पणी कहाँ गयी!!

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  3. बहुत खूब लिखा है |
    कड़ाके की ठण्ड मे अलसाया सा सब कुछ |
    ...” अभी डिज़ाइन भी शुरू नहीं किया....... राम जी खैर करे........”
    वाह वाह ! काम के टेंशन के क्या कहने !

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  4. आलस और टिप्पणी? उफ़ ! बेहद भयावह्………है ना । हा हा हा।

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  5. जोगन को छोडने जाना है, यह सोच कर ही आलस भाग जाना चाहिये था :)

    प्रणाम

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  6. राकेश के लिए दिल से दुआ निकल रही है ...अच्छे घरों में संस्कार दम तोड़ रहे हैं और सड़क पर सच्चाई मिल जाती है ...

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  7. दीपक भाई आम आदमी के बीच ईमानदारी है .. देश में ऐसे राकेश हजारों हैं.. मेरी मुलाकात भी कई राकेश से हुई है समय समय पर.. बहुत गर्मी दे गई आपकी यह रचना..

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  8. राकेस जैसों के दम पर ही धरती टिकी है। मजा ये है कि ये सब को दिखते नहीं, मिलते नहीं। हमारा भी प्रणाम पहुंचे।

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  9. दीपक बाबू जी!
    मुझे तो ऐसे किरदार जब भी मिले हैं, नत हो गया हूँ उनके आगे! यह तो नन्हा फ़रिश्ता था जो आपको मिला!

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  10. राकेस जैसों के दम पर ही धरती टिकी है। इमानदारी को प्रणाम|

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  11. काम के टेंशन के क्या कहने
    आप की बक बक सराहनीय

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  12. इस दौर में ऐसी डरावनी कहानियां न सुनाओ मेरे बच्चे भी पूछेंगे कि वह लड़का क्यों इंतज़ार करता रहा, क्या वह किसी और दुनिया का था ?

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  13. पुस्तक मेले से सिर्फ एक ही किताब लाये ? मैं तो जब घुसता हूँ तो पूरी बोरी भर के किताबें खरीद लेता हूँ...अपने लिए पुस्तक मेला भैंस के चारे के समान है जिसे हम फटाफट खा कर फिर सारे साल उसकी जुगाली करते रहते हैं...

    राकेस की इमानदारी कबीले तारीफ़ है...अफ़सोस इमानदारी अब ऐसे हासिये पर बैठे लोगों के बीच ही बची हुई है...बाकि तो सब इसको जय राम जी की बोल कर कब का छोड़ चुके हैं...
    हमेशा की तरह लाजवाब पोस्ट.
    नीरज

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  14. नीरज जी, किताबे तो कई खरीदी पर उसमे उल्लेखनीय आवारा मसीहा ही थी, क्योंकि श्रीकांत, चरित्रहीन, देवदास, इत्यादि नोवेल पढ़ने के बाद शरतचंद्र की जीवनी पढ़ने के लिए उत्सुक था......

    अन्य, में निदा फाजली, फैज़ की गज़ल, कबीर पर ओशो की पुस्तक, कबीर के दोहों का संकलन, और कुछ कहानियों की किताबें.....
    उसके अतरिक्त अटल जी और ठाकुर रविन्द्र नाथ की कविताये ही ले पाए.......

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  15. किशोर जी, यूँ अचानक आपका आना मेरे लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है.

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  16. सही है...इमानदारी और कर्तब्यनिष्ठा अब इसी तबके में तो बच गयी है...बड़े लोग तो घपलों घोटालों में कुशलता आजमाने में व्यस्त हैं..

    सर्दी के बहाने ही भावुक करने वाली पोस्ट रच दी आपने...

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  17. बाबा जी आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया। अच्छा लगा आपका लेखन। अब मुलाकात होती रहेगी। :)

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  18. ऊफ ठंडी ठंडी सभी पोस्टो पर सुन सुन कर अब तो जी और खिजाने लगा है मुंबई की इस गर्मी से | हम भी होम वर्क ही कर रहे है |

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  19. बहुत अच्छी पोस्ट है...
    नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं...

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.