15 मई 2011

सुनो जोगी..




ये गुलमोहर के विशाल दरख्त...

लाल-लाल छितराए हुए... दूर तक

फलक तक फैली शाम की लाली...

और ये अमलतास के

पीले ... पीले खुशी से सरोबार ....

यों दूर से आती रहंट से

पानी गिरने की आवाज़ ..

सुनो जोगी.. सुनो..

फिर मत कहना ..

जिदगी रसहीन है...

और मैं रसिक ...

इस मायावी दुनिया को छोड़ चला...

13 टिप्‍पणियां:

  1. हमारी ब्लॉग की दुकानवा तो बंद हो जाएगी..
    बाबा अब कविता भी करने लगे...अब हमे कोई न पूछे है..
    बाबा बकबक ही करें भक्तों के लिए भी कुछ छोड़ दें..वैसे भी रसपान की उमरिया तो अब बीत गयी क्यों नित्यानंद बनने पर तुले हैं..
    वैसे आप के अन्दर कवि भी हैं आज मालूम हुआ..
    मजा आ गया.. मैं चला जीवनपुष्प के पास रसास्वादन करने..

    फिर मिलते हैं आप की अगली बकबक तक ..जय श्री राम

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  2. जिन्दगी तो बहुत खूबसुरत है ही... जिन्दगी की खूबसुरती को निखारती हुई सुन्दर पोस्ट।

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  3. दीपक बाबू!
    आज तो दार्शनिक बने हो प्रभु!!!

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  4. कहाँ चल दिए बाबा ......
    शिष्यों का क्या होगा ...??

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  5. सुन्दर कविता
    जिंदगी के रंगों से सरोबर

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  6. जय हो !!

    बाबा मूड में लगते हैं आज. सुन्दर कविता. ))

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  7. baba ji kaha jaa rahe hoo.......

    chutti ka pura pura sadupog............

    jai baba banaras.................................

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  8. खोजने वाली दृष्टि चाहिए .... वरना सब कुछ व्यर्थ है ... सुंदर रचना है ....

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  9. चित्र और कविता से मन तृप्‍त हुआ। बधाई।

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  10. गुलमोहर से अमलतास तक, रंग ही रंग ...

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  11. आनंद आ गया बाबा आपके आश्रम (ब्लॉग) पर आकर.
    अब आप मेरी कुटिया (ब्लॉग) पर भी पधारें.
    मेरी ५ मई को जारी पोस्ट आपके दर्शन की प्यासी है.
    अनुग्रह कीजियेगा बाबा.रस की बरसात कीजियेगा बाबा.

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.