निजीकरण हो गया ......
पुरे देश का..
देश, बैंक, बिजली, रोड, पुल सब कुछ किसी न किस अनुपात में निजी हाथों को सोपं जा चुके हैं... पर ये समझ नहीं आता सांड कैसे छूट गया.
बात आज जुम्मन मियां के मुंह से निकली और हमने तुरंत लपक ली. पडोसी, कल्लन मियां को कह रहे थे;
"मियां लौंडे का बियाह क्यों नहीं कर देते, कब तक दाडी-जुल्फें बड़ाए, यारों की बाईक उधार मांग सरकारी सांड की तरह आवारागर्दी करते रहेंगे"
ओउचक रह गया मैं..
"सरकारी सांड; यानी/मतलब... जुम्मन चच्चा; ये क्या बात कर दी सरकारी सांड वाली"
अरे भाई सरकारी सांड; यानी .... कहीं मुंह मार ले, किसी की भी ढकेल पलट दे, किसी के भी पीछे भाग ले जैसे दिल्ली मुन्सिपल कारपोरशन के कर्मचारी... कहीं भी... किसी भी समय.. सरकारी नुमायेंदे हैं इसीलिए ... कुछ भी कर लेते हैं.. और मन माफिक पैसा पा कर ही बच्चू जी को छोड़ते हैं... तभी सरकारी सांड कहा जाता है.
यही इन लोगों का निजीकरण हो जाए, तो तरीके से तह्सीब से पेश आते हैं जैसे कि आजकल एयरटेल, वोडाफोन, वगैर निजी कंपनियों के मुलाजिम... सर के बिना बात नहीं करते, ये नहीं देखते सामने वाला, लुंगी पहने – बिना बनियान के है क्या वो सर कहलाने के कबिल है या नहीं, पर सर कह कर बात करते हैं; क्या सरकारी सांड यानी एमटीएनएल (दिल्ली, मुंबई के इतर – बीएसएनएल पढ़े) के नुमायेंदे होते ... और सर लगा कर बात करते ... नहीं मियां वो सर पकड़ कर बोलते थे... फोन ठीक नहीं होगा... अगले १०-१५ दिन तक... समझे... इंसान वही... (सांड वही)... काम वही, पर निजी होते ही व्यवाहर बदल गए, औकात बदल गए..
मियां हम तो कहते हैं; इस देश में सभी का निजीकरण कर देना चाहिए..... सभी का .. सब से पहले संसद और विधानसभा, दोनों सदनों का निजीकरण कर देना चाहिए.... ताकि सरकारी सांडों की तरह दायें बांये मुंह न मार सके.. सलीके से पेश आये... हर मतदाता के घर फोन आये... सर कोई परेशानी तो नहीं.... आपके घर पानी समय से आता है, पानी बदबूदार तो नहीं आता; आपकी गली ठीक/भली प्रकार से बन गयी है कोई खड्डे तो नहीं....
फिर आएगा इस देश में जीने का मजा.... हम भी देख्नेगे... जीवन किसे कहते हैं अभी तक तो लोगों (अमेरिका/यूरोप के लौटे लोगों से सुना है ... जीवन वहीँ है ... यहाँ तो मात्र जिंदगी घसीट रहे हैं ... कीड़ों मकोडों माफिक)...
सोचो, मियां सोचा, जरा दिमाग पर जोर दे कर सोचो...
आपके कौंसलर (सिटी) आपके घर आ जाये और बोले जी आपको मकान में कहाँ मरम्मत करवानी है... लाये परमिशन लिख दूं...
इनकम टेक्स के अधिकारी आपके द्वार आ जाये और बोले .... लाओ मिंया अपना हिसाब लाओ,
अभी आपके टेक्स का चिटठा बना देते हैं;.... अरे अरे अरे सर क्यों चाय का कष्ट कर रहे हैं....
और आप मानना सांडों का निजीकरण हो गया.
मुंह मार रहे हैं सरे बाजार... दोनों... सांड और सरकारी कर्माचाई ....इसलिए दोनों बराबर है .. दोनों का निजीकरण होना चाहिए....
अभी आपके टेक्स का चिटठा बना देते हैं;.... अरे अरे अरे सर क्यों चाय का कष्ट कर रहे हैं....
और आप मानना सांडों का निजीकरण हो गया.
मुंह मार रहे हैं सरे बाजार... दोनों... सांड और सरकारी कर्माचाई ....इसलिए दोनों बराबर है .. दोनों का निजीकरण होना चाहिए....
जय राम जी की.
हा हा हा, सरकारी सांडो का निजिकरण हो या न हो पर इनको बैल बनाने की प्रक्रिया जनता को शुरु करनी पड़ेगी, तभी ये जुड़े के नीचे आएंगे।
जवाब देंहटाएंसाड़ बहुत हो गये हैं तो कुछ सड़कों पर भी आ गये।
जवाब देंहटाएं@प्रवीण पाण्डेय साड़ बहुत हो गये हैं तो कुछ सड़कों पर भी आ गये....कुछ सांड तो सींग भी मारने लगे हैं !
जवाब देंहटाएंनिजीकरण हो जाने से यदि इन सांडों के सींग कट सकें तो आईडिया लाख रुपये का हैssssss ।
जवाब देंहटाएंहाहाहा
जवाब देंहटाएंलाजवाब! आपकी कुशल लेखनी का रंग बड़ा निराला होता है। मन प्रसन्न हो गया।
उन भाई लोगों के निजीकरण का कोई यंत्र विकसित करो न भाई :)
जवाब देंहटाएंवाह मैं तो इन्तजार कर रही हूँ प्रधानमंत्री के फोन का। जब वे पूछेंगे कि आपको कोई तकलीफ तो नहीं हैं। हा हा हा हा।
जवाब देंहटाएंहमारा तो हो चुका थोड़ा बहुत निजीकरण, ऊपरवाला जल्दी से बाबाजी की सुने तो मजा सा आये।
जवाब देंहटाएंये काम हो जाये तो मज़ा आ जाये
जवाब देंहटाएंक्या बात है सर जी ! आपका ये उम्दा व्यंग पसंद आया!
जवाब देंहटाएंR.....d, Saad,sadhu sanyasi,
जवाब देंहटाएंinse bache to aana kaasi....
jai baba banaras...................
सांडों की जनसँख्या अभी बहुत ज्यादा है इसीलिये सरकार उनके बारे में सीरिअसली नहीं सोचती.
जवाब देंहटाएंवैसे अजित गुप्ता जी का आइडिया अगर सच हो जाये तो. वाह वाह वाह....