भगवान बुद्ध गाँव गाँव शहर शहर घुमते इन्द्रप्रस्थ आये, और गट्टर कि गंदगी से भरी यमुना किनारे एक विशाल वृक्ष के नीचे आकार बैठ गए, इन्द्रप्रस्थ की शानोशौकत देख कर भूल गए कि ये अब दिल्ली शहर है - जो कि भारतखंड नामक द्वीप की राजधानी बन चुकी है, जहां बैठ कर कुछ लोग सवा अरब मानव के भाग्य विधाता बने हुए हैं. जैसे इस नगर में आकर श्रवण अपनी पितृ-मात भक्ति भूल गया था उसी प्रकार पर भगवान बुद्ध भी बौद्ध गया से प्राप्त ज्ञान भूल गए, और शांति वन के नज़दीक एक बड के पेड़ के नीचे विचारवान मुद्रा में बैठ गए.
सायं ६ बजते ही जैसे बाबु लोग आई.टी.ओ. से ऐसे छूटे मानो बच्चो का समूह स्कूल से छूटा हो - राष्ट्रपति के आकस्मिक निधन के कारन. ऐसे में एक विद्वजन सारा दिन राजकीय सेवा से त्रस्त, शान्ति की खोज में शान्ति वन टहलता हुआ आया, और एक सफाचट पुरुष को घने पेड़ के नीचे बैठा देख जान गया, हो न हो, भंते ने प्राणी मात्र के उद्धार के लिए फिर से जन्म लिया है.
वो तुरंत भगवान बुद्ध के शरणगत हुआ, शीश निवा उनके सामने बैठा. भगवान समझ गए, कलियुग का शासकीय कर्मचारी किसी परेशानी में है, उन्होंने आँखे खोली और उसकी ओर प्रशन चिन्ह निगाह से देखा.
प्राणी जो पहले से ही त्रस्त था, और घर न जाने के सौ बहाने वाली पुस्तक के सारे बहाने श्रीमती पर प्रयुक्त कर चुका था, बोला,
भंते - ऐसा कब तक,
भगवान बुद्ध मुस्कुराए, पर ये मुस्कराहट - इन्द्रा और अटल के समय की नहीं था, न ही वो अब की कठिन परास्थितियों में वे वैसे मुस्कुरा सकते थे.
शोक मनाने का समय नहीं है कुमार, अभी तुरंत जाओ और अपनी गाडी में पेट्रोल ३० लीटर फुल करवा दो,
भंते कैसे बात कर दी आपने, भला ३० लीटर पेट्रोल कितने दिन चलेगा – इस राजधानी की सड़कों पर.
कुमार, देखो तुम्हारे बाकि मित्र भी तो यही कर रहे हैं, - भगवान बुद्ध के चेहरे पर एक देश के वित्तमंत्री – प्रणव वाली शरारती मुस्कान थी.
भंते, मैं अभी परेशानी में आपकी शरण आया हूँ, इस रोज रोज के पेट्रोल की उठापटक से मुझे पूर्ण मुक्ति चाहता हूँ,
भगवान – फिर मुस्कुराए, इस बार भी उनकी मुस्कुराहट कहीं न कहीं शासकीय लग रही थी, कुमार, पेट्रोल आज ७३.१५ पैसे हुआ है, तुम दो-पहिया वाहन का इस्तेमाल करो.
ठीक है भंते, - कुमार ने अनिश्चय पूर्ण नज़रों से भगवान को देखा.
मैं समझ सकता हूँ, कुमार. और समझ भी रहा हूँ, तुम सोच रहे हों, अगले महीने फिर से पेट्रोल के दाम गर ८५ रुपये पार गए तो. कुमार, मैं इस कलियुग में मात्र तुम्हारी परीक्षा लेने ही आया हूँ, तुम मेरे वही शिष्य हस्तक आलबक. याद करों मेरी शिक्षाएं, क्या युग बदलने के बाद मेरा औचित्य समाप्त हो गया.
भंते..... मुझे क्षमा करें, मैं भूल गया था,
फिर,
फिर क्या भंते मैं कल से ही अपनी गाडी औने पौने दाम बेच कर दू-पहिया वाहन खरीदूंगा,
हाँ, लेकिन गर अगले महीने फिर से पेट्रोल ८५ रुपे लीटर हो गया तो,
भंते, में शासकीय सेवा के अन्तरगत चलने वाले वाहनो का उपयोग करूँगा, दू-पहिया वाहन को भी त्याग दूँगा,
बुद्ध फिर से मुस्काए, इस बार उनकी मुस्कराहट राजमाता वाली थी – जो अमेठी में मुस्कुराती हैं.
कुमार, गर कल शासकीय सेवा में चलने वाले वाहन के भाड़े में भी बढोतरी हो गई तो,
प्रभु, आपने मेरे ज्ञान चक्षु खोल दिए हैं, मैं पैदल ही चलूँगा, पर चेहरे पर शिकन नहीं आने दूंगा.
जाओ कुमार, जाओ, मेरा कल्युगाटन पूर्ण हुआ, तुम्हे सही रास्ते देखा – सकून है, मैं चलता हूँ, मगध की तरफ, वहाँ के शासक और प्रजा वर्ग में भी बहुत बैचेनी है.
बुद्धं शरण गच्छामि
बुद्ध मुस्कराएँ हों या नहीं पर बुद्धू ज़रूर मुस्काएं हैं :-)
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया
जवाब देंहटाएंसाइकिल शरणं गच्छामि..
जवाब देंहटाएंWaah.... :-)
जवाब देंहटाएंBhagwan budd ne raat sapne main aakar kaha he veer bhumi ke veer putro
जवाब देंहटाएंkab tak sote rahana chal uth aur jitne neta log hai sabko ek saath ekkahata kar ke petrol bath kara ...baaki ka kaam ye sab apne aap kar lenge bas tu petrol bath kara....
jai baba banaras....
७३.१५ नहीं प्रभु ७३.१८, लेकिन की फर्क पैंदा है? मुर्दा हल्का थोड़े ही ना हो जाएगा?
जवाब देंहटाएंमुस्कराहट राजमाता वाली थी – जो अमेठी में मुस्कुराती हैं,
जवाब देंहटाएंmast
दीपक बाबा की बकबक रंग लाने लगी है.. सारी पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमत वसूल हो गयी इस पोस्ट को पढकर!!
जवाब देंहटाएंआपने धीरे -धीरे बक बक करके बहुत कुछ कह डाला
जवाब देंहटाएंPetrol ke bahane achchha vyang hai...wah kya kahne.
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य.
जवाब देंहटाएंहा हा हा हा
जवाब देंहटाएंहा हा हा कारी, हाहाकारी कटाक्ष।
जवाब देंहटाएंभंते, में शासकीय सेवा के अन्तरगत चलने वाले वाहनो का उपयोग करूँगा, दू-पहिया वाहन को भी त्याग दूँगा... अईसा ही होत है ..सच्ची सच्ची ... बहुत खूब कहीं जी ...
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