नहीं नहीं, तुम गलत समझे मेरे दोस्त,
मैं मरना तो चाहता हूँ, पर मर कर दुबारा जिन्दा भी होना चाहता हूँ,
मैं देखना चाहता हूँ, कैसे और क्यों मुझे कोई कंधे पर उठता है, बवजूद इसके कि मैं जानता हूँ, कि अब कंधे किसी भी अर्थी कर वज़न नहीं उठा पायेंगे, क्योंकि वो त्रस्त है,
पहले ही झुके हैं वो कंधे, परिवार के अरमानो को झूलते झुलाते,
दूध सब्जी और राशन के थोडा सा बौझ पर इतने पैसे लुटाते, सिगरेट का कश भी गिन गिन पीते,
झुके झुके से चल कुछ गुनगुनाते बडबडाते, बुदबुदाते,मन ही मन, मन को समझाते, गिरे नयनो से घर को आते, उनके कंधो का वज़न और तोलना चाहता हूँ,
मेरे दोस्त, मैं एक बार मारना तो चाहता हूँ, पर मर कर दुबारा जिन्दा भी होना चाहता हूँ,
चाहता हूँ, कि देखूं, उन दुशालों के रंग - जो मेरी महायात्रा के दौरान मेरे को उडाई गई, जिसको जीते जी तरसा था, उन इत्र, मखाना, नारियल को, उसी सम्मान को, उस नमन को, देखना चाहता हूँ,
उस पवित्र अग्नि की दहकती प्रचंड लपटों को कुछ कुछ मैं महसूस करना चाहता हूँ, कि मेरे भी दिल में दहकते थे कुछ सवाल जो अनुतरित रह गए, क्या वो ऊष्मा कुछ अलग थी, और ये कुछ अलग सी है,
मित्र, वास्तव में, मैं एक बार मरना चाहता हूँ, पर दुबारा जिन्दा भी होना चाहता हूँ,
जिन्दा इसलिए कि समझा सकूं, सब व्यर्थ था,
मेरी कोठी, कार, मेरा वैभव, मेरा कुटुंब - जिसके लिए मैंने वो सब किया जो नहीं करना चाहिए था, मेरे षडयंत्र, मेरे काले कारनामे सब व्यर्थ था, सब व्यर्थ, मेरे दोस्त सब समझाऊंगा तुम्हे, फिर से जिन्दा होकर.
मैं मरना तो चाहता हूँ, पर मर कर दुबारा जिन्दा भी होना चाहता हूँ,
मैं देखना चाहता हूँ, कैसे और क्यों मुझे कोई कंधे पर उठता है, बवजूद इसके कि मैं जानता हूँ, कि अब कंधे किसी भी अर्थी कर वज़न नहीं उठा पायेंगे, क्योंकि वो त्रस्त है,
पहले ही झुके हैं वो कंधे, परिवार के अरमानो को झूलते झुलाते,
दूध सब्जी और राशन के थोडा सा बौझ पर इतने पैसे लुटाते, सिगरेट का कश भी गिन गिन पीते,
झुके झुके से चल कुछ गुनगुनाते बडबडाते, बुदबुदाते,मन ही मन, मन को समझाते, गिरे नयनो से घर को आते, उनके कंधो का वज़न और तोलना चाहता हूँ,
मेरे दोस्त, मैं एक बार मारना तो चाहता हूँ, पर मर कर दुबारा जिन्दा भी होना चाहता हूँ,
चाहता हूँ, कि देखूं, उन दुशालों के रंग - जो मेरी महायात्रा के दौरान मेरे को उडाई गई, जिसको जीते जी तरसा था, उन इत्र, मखाना, नारियल को, उसी सम्मान को, उस नमन को, देखना चाहता हूँ,
उस पवित्र अग्नि की दहकती प्रचंड लपटों को कुछ कुछ मैं महसूस करना चाहता हूँ, कि मेरे भी दिल में दहकते थे कुछ सवाल जो अनुतरित रह गए, क्या वो ऊष्मा कुछ अलग थी, और ये कुछ अलग सी है,
मित्र, वास्तव में, मैं एक बार मरना चाहता हूँ, पर दुबारा जिन्दा भी होना चाहता हूँ,
जिन्दा इसलिए कि समझा सकूं, सब व्यर्थ था,
मेरी कोठी, कार, मेरा वैभव, मेरा कुटुंब - जिसके लिए मैंने वो सब किया जो नहीं करना चाहिए था, मेरे षडयंत्र, मेरे काले कारनामे सब व्यर्थ था, सब व्यर्थ, मेरे दोस्त सब समझाऊंगा तुम्हे, फिर से जिन्दा होकर.
हे हो सरकार ..ई हेडिंगवे में मरना का मारना हो गया है जुलुम ढा रहा है जी , बुलेटिन में लिए जा रहे हैं मारना ही पडेगा अब तो आपको एक बार :)
जवाब देंहटाएंसही पकडे अजय भाई, मरना की जगह मारना हो गया - अभी ठीक करते हैं, बकिया बुलेटिन में जगह देने के लिए आभार.
हटाएंbhai marna apne hath hai par fir se paida hona bhagvan ke .jara sochkar karen jo ....bhi karen .
जवाब देंहटाएंbadhiya hai .
जवाब देंहटाएंमरकर ज़िंदा हो रहे, है हिम्मत का काम |
जवाब देंहटाएंडबल बहादुर हैं प्रभू , बारम्बार सलाम |
बारम्बार सलाम, करे कुछ लोग तगादा |
बीबी ढूँढे काम, दोस्त दस बाढ़े ज्यादा |
बेटा डबल सवार, ढूंढता नया परिंदा |
ठीक-ठाक परिवार, करो क्या होकर ज़िंदा ||
लोग जीते-जी मरने का मजा लेने लगें तो कई कंपनियों के डिस्काउंट-ऑफर आ जायेंगे !
जवाब देंहटाएंबाकी झाजी ने सही पकड़ा !
वो वनवे ट्रैफ़िक है भाई!
जवाब देंहटाएंShandaar Dipak ji,
जवाब देंहटाएंBahut Badiya
सब व्यर्थ, मेरे दोस्त सब समझाऊंगा तुम्हे, फिर से जिन्दा होकर.
जवाब देंहटाएंagar koie affar hai ek ke saath ek free to ham bhee saath hai...
jai baba banaras...
Bahut Badiya
जवाब देंहटाएंबाबाजी, हमारी मान्यताओं में जो समाधि अवस्था का जिक्र आता है, वो यही सब तो है| ध्यान को या प्राणों को एक स्थान पर केन्द्रित करके संभावित मृत्यु का अनुभव करना और सिद्धजन इच्छानुसार समाधि अवस्था में और चैतान्यवस्था में आते जाते हैं जिसे आध्यात्मिक अर्थों में 'जीते जी मरना' भी कहा जाता है|
जवाब देंहटाएंबाकी तो आप सर्वज्ञ हैं ही, मरो चाहे मारो:)
बाबा श्री,
जवाब देंहटाएंआपके आलेख से तो लगता है आप सब कुछ समझ चुके है, जान चुके है। यह जिद छोडो, क्यों रिस्क लेना :) जब सभी तो पता है लौट कर कोई नहीं आता न आया है।
आयुष्मान भवः
सोचियेगा भी मत , संगदिल दुनिया का रवैया देख आत्मा को दुःख ही मिलेगा :)
जवाब देंहटाएंइसके लिए मरने की क्या जरूरत है.
जवाब देंहटाएंआंखे बंद कीजिए और एक एक आदमी की तस्वीर मन में सोचे, सब साफ साफ दिखाई दे जाएगा।
त्वरित टिप्पणी से सजा, मित्रों चर्चा-मंच |
जवाब देंहटाएंछल-छंदी रविकर करे, फिर से नया प्रपंच ||
बुधवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.in