जंगल में सभी प्राणियों ने पंचायत की. इस बार प्रधानी में शेर को विजयी न होने दिया जाए..... क्या है कि ताकतवर है, जब चाहे किसी न किसी को तंग करता रहता है, किसी न किसी को उठा कर ले जाता है, अपनी मनमानी करता है. इस बार प्रधानी में किसी और प्राणी को चुना जाए....
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सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हुआ, और बन्दर जी को प्रधानजी के पद पर मनोनीत किया गया. बन्दर जी प्रसन्न हुआ और प्रधानी भाषण पढ़ा गया... बन्दर जी बोले“कानून सभी के लिय बराबर होगा, और पूर्ण स्वतंत्र होकर आपना काम करेगा. हर प्राणी को जीने की पूर्ण आज़ादी होगी”
तालियाँ ......
फोटू सेस्सन के बाद सभा विसर्जित हुई.
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कुछ दिन बाद एक बकरी हांफते हाँफते आयी, प्रधानजी प्रधानजी, शेर मेरे बच्चे को उठा कर ले गया है.....शेर की इतनी हिम्मत, इस लोकतान्त्रिक जंगल में, जहां हर प्राणी को अपनी आज़ादी से जीना का पूर्ण अधिकार प्राप्त है – वो अपनी मनमानी और गुंडागर्दी नहीं कर सकता, बंदर जी ने जोश में कहा
प्रधानजी, यहाँ बातें मत कीजिए, जल्दी चलिए...... समय बहुत कम है...
चलो देखते हैं.
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देखा तो शेर एक पेड के नीचे बकरी के बच्चे को दबोच कर सुस्ता रहा था.बकरी ने इशारा किया...... प्रधानजी उछलकर पेड पर चढ़ गए ......
बकरी चिल्लाई...... देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन पर दांत गडा रहा है
बंदर ने पेड की एक डाल से दूसरी डाल पर उछलना शुरू कर दिया...
बकरी चिल्लाये..... देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन को नोच रहा है
बन्दर ने और जोर से पेड की शाखाओं को हिलाना चालू कर दिया ....
बकरी जोर से चिल्लाती रही...
शेर बच्चे को खाता रहा.....
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बन्दर कभी इस डाल कभी उस डाल..... जा जा कर जोर जोर से पेड की शाखाओं के हिलाता रहा.....शेर ने बच्चे को पूरा खा लिया.....
बकरी रोने लग गई..... रोड पर स्यापा करने बैठ गई...
बन्दर थक कर पेड से नीचे आया, और बोला..
बकरी ने अर्शुपूर्ण दुखभरे नेत्रों से बन्दर को देखा.....
हांफता हुवा बन्दर सर झुका कर बोला, “मैं ईमानदार प्रधान हूँ - पूरी इमानदारी से महनत की, मेरे प्रयत्नों में कोई कमी हो तो बताओ....”
जी दोस्तों,
शक्तिहीन की इमानदारी भी किसी काम की नहीं रहती..
शेर बच्चे को खा रहा है.....
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भेडिये और सियार बची हड्डियों को पाने के लिए जंगल पंचायत को ठप्प करके बैठे है...
भेडिये और सियार बची हड्डियों को पाने के लिए जंगल पंचायत को ठप्प करके बैठे है...
बकरी विलाप रही है.....
इस लोकतान्त्रिक जंगल में अपने-अपने हिस्से के लिए लड़ाई है, जनता के हिस्से की लड़ाई कौन लड़े. अत: बकरी का विलाप जारी है...
एक प्रधान कह रहा है
"मेरी इमानदारी में कोई कमी हो तो बताओ.....
अब शेर के मुहं कौन लगे."
अब शेर के मुहं कौन लगे."
दीपक बाबू! जहाँ ईमानदारी रोम रोम में बसी हो वहाँ, जनता बकरी की तरह पोप से.... माफ करना, पोल से पिलर तक गुहार लगाती दिखाई देगी!!
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जवाब देंहटाएं@ दीपक बाबा,
अक्सर यहाँ अपनापन के अर्थ उल्टा ही लगाया जाता है ! भाई लोग आसानी से हंस कर बात भी नहीं करते, मुस्काते हैं तो लगता है जैसे अहसान कर दिया हो :-)
हर ऐसी पोस्ट जो एक करने और मित्रता के आवाहन लिए होती है उस पर शक किया जाता है ,बची खुची कसर उस पर आये कमेन्ट पूरी कर देते हैं ! और तो और जिसके लिए पोस्ट समर्पित होती है उन्हें भी उसकी नियत पर शक ही रहता है !
खैर ,
नए शक्तिशाली शक्ति पूंज आ चुके हैं और उम्मीद है वे ऐसे नहीं होंगे !
आप उनमें से एक हैं दीपक बाबा !
शुभकामनायें आपको !
"मेरी इमानदारी में कोई कमी हो तो बताओ..... अब शेर के मुहं कौन लगे."
जवाब देंहटाएंसच्चाई तो यही है
पर क्या हमेशा ऐसा ही होता रहेगा
कभी तो बकरी केा भी शेर से लडने का हौसला करना ही पडेगा
@सलिल जी, भूने हुवे 'जो' को पीस कर सत्तू बनाकर जो सत्व प्राप्त होता है वह आपकी टीप में होता है.
जवाब देंहटाएं@सतीश जी, गुरूजी, मेरी इमानदारी में कोई कमी हो तो बताना.
@दीपकजी, पता नहीं वो दिन कब आएगा.
जवाब देंहटाएंइस लेख की तारीफ़ करना भूल कर पता नहीं क्या छाप गया था :-(
बड़ा मार्मिक प्रयत्न किया था बिचारे ने अब ऐसा बेबकूफ भी नहीं था कि अपनी ब्लागिंग अरे रे रे रे जान को ही जोखिम में डाल दे !
क्या करता बेचारा ! ऐसे प्रधान खूब मिलते हैं बाबा ....आप क्या करोगे ??
मजा आ गया...घुमा के मारा है आपने एकदम :)
जवाब देंहटाएंbahut badhiya deepak sir
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आप ने इस कथा के माध्यम से बाबा जी, मगर परधानी ऐसों बंदरों के हाथ में नहीं बल्कि ऐसे बंदर के हाथ में होनी चाहिए जो शेर के कान पकड़ कर थप्पड़ मारे (U- Tube का एक विडियो याद आ गया जिसमें एक शरारती बंदर पेड़ से उछल उछल कर आता और शेर के कान पकड़ कर वापस पेड़ पर )
जवाब देंहटाएंशक्तिहीन की इमानदारी भी किसी काम की नहीं रहती..
जवाब देंहटाएंjaise mannu baba.
सही कही परधान जी ने, अपने प्रयास में कोई कसर नहीं छोड़ी उन्होंने।
जवाब देंहटाएंवैसे अपना फ़ार्मूला भी यही है और फ़ंडा भी यही, कि अपनी कोशिश करो और परिणाम की चिंता मत करो।
लिखो बाबाजी, एक आधुनिक (प्र)पंचतंत्र, जरूरत है आज के समय की।
मस्त उदाहरण दिया है।
छा रहे हो गुरू दिनोंदिन। ध्यान रखना छोटे भाईयों का:)
@उपेन्द्र जी, पहले बता देते, कथा को कुछ और मोड देते
जवाब देंहटाएं@पूर्विया जी, "जैसे मन्नू बाबा" पर कुछ और प्रकास डालते जाते,
@संजय जी (मौ सम कौन), सहमत हूँ एक आधुनिक (प्र)पंचतंत्र के लिए. छाते तो काले बादल भी हैं, पर चंद मिनटों में बरस कर चले जाते हैं.......
(प्र)पंचतंत्र पर मेरी भी सहमति है। इसे साप्ताहिक धारावाहिक बना दीजिए।
जवाब देंहटाएं@ बकरी ने इशारा किया...... प्रधानजी उछलकर पेड पर चढ़ गए ......
बकरी चिल्लाई...... देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन पर दांत गडा रहा है
बंदर ने पेड की एक डाल से दूसरी डाल पर उछलना शुरू कर दिया...
बकरी चिल्लाये..... देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन को नोच रहा है
बन्दर ने और जोर से पेड की शाखाओं को हिलाना चालू कर दिया ....
बकरी जोर से चिल्लाती रही...
शेर बच्चे को खाता रहा.....
छा गए बड़े भाई!
(प्र)पंचतंत्र ...
जवाब देंहटाएंऐसे देश और उसके अधिपति को हमारा बारम्बार नमस्कार है |
अच्छा लगा ये पोस्ट, पर टिप्पणियों ने तो समाँ बाँध दिया |
शक्तिहीन और ईमानदारी दोनों ही विरोधाभाषी हैं.... अच्छा व्यंग्य...
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