दाढ़ी बनाना भी एक कला (आर्ट) है – और कई तरह की कलात्मक कार्यों की तरह ये बिद्या भी मुझ से कुछ रूठी ही रही है..... काफी गहन चिंतन और मनन के बाद फैसला कर पाता हूँ कि दाढ़ी (शेव) बनाई जाए – और जब शेव बन जाती है तो कई नीचे गर्दन की तरफ कई जगह छोटे छोटे बाल (.२ या फिर ०.३ मिमी) ऐसे छूट जाते है मानो बारिश में बुंदेलखंड की धरा. ... पहली बार जब दाढ़ी बनवाई थी, उम्र होगी १८-१९ साल, मज़े मज़े से बोला था मास्टर जी आज हमारी भी शेव कर दो. और उस वक्त के नाज़ुक चेहरे पर (जब बक्त के थपेड़े नहीं पड़े थे) फिटकरी की जलन होने लगी तो मैंने मुंह बनाया ... मास्टरजी बहुत जलन हो रही है ...... और मास्टरजी का तुरंत जवाब था .... जलन तो अभी ग**** (वहीँ जहाँ आप सोचने लग गए) में होगी जब शगुन के २१ रुपे लूँगा ........ J . भाई अभी तक मास्टरजी के २१ रुपे बकाया है.
बहरहाल पुरानी बात है, आज दाढ़ी तो बन भी जाती है पर मूंछों को बनाने में जो करीने से कैंची चलानी पड़ती है.... वो बहुत पेचीदा काम हो जाता है – लेफ्ट राईट दोनों देखना पड़ता है. अभी विद्वान संपादक तो हैं नहीं कि लेफ्ट राईट दोनों पर बराबर निगाह रखें J..... दफ्तर के बाबु लोगों का सही है ... रोज दाढ़ी बनाते है और मूंछे भी सफाचट, कोई चिंता नहीं. पर राजस्थान के संस्कार है..... भाई मूंछे एक बार ही मुडती हैं..... तर्क अपने अपने है... उनको किया लिखना. मुख्या मुद्दा तो दाढ़ी को लेकर है.
बहरहाल पुरानी बात है, आज दाढ़ी तो बन भी जाती है पर मूंछों को बनाने में जो करीने से कैंची चलानी पड़ती है.... वो बहुत पेचीदा काम हो जाता है – लेफ्ट राईट दोनों देखना पड़ता है. अभी विद्वान संपादक तो हैं नहीं कि लेफ्ट राईट दोनों पर बराबर निगाह रखें J..... दफ्तर के बाबु लोगों का सही है ... रोज दाढ़ी बनाते है और मूंछे भी सफाचट, कोई चिंता नहीं. पर राजस्थान के संस्कार है..... भाई मूंछे एक बार ही मुडती हैं..... तर्क अपने अपने है... उनको किया लिखना. मुख्या मुद्दा तो दाढ़ी को लेकर है.
दाढ़ी को विद्रोही की निशानी भी माना जाता थी – या है... कुछ कहा नहीं जा सकता. एक विद्रोही समाजवादी नेता जो बाद में प्रधानमन्त्री भी बने, चंद्रशेखर की दाढ़ी को मैं इस बात का पैमाना मानता हूँ.... और आजकल तो अपने युवराज भी कई बार दाढ़ी बड़ा कर फोटू खिचवा रहे हैं.... पता नहीं किस बात का विद्रोह दिखा या जता रहे हैं. छडो जी, सानू की.
रविवार को अधिकतर बाबू लोग दाढ़ी नहीं बनाते, क्योंकि दफ्तर नहीं जाना..... दफ्तर नहीं जाना तो कोई बंधन नहीं ... आजादी है – सो दाढ़ी मत बनाओ... देखिये यहाँ शेविंग का मतलब आज़ादी से हो जाता है. कहीं न कहीं ये व्यक्ति के आज़ाद व्यक्तिव को तो नहीं दिखाती ... दिखाती है. पुराने अभिवाजित भारत के नक़्शे को अगर देखा जाए तो दिल्ली से शुरू और अफगानिस्तान तक फैले पंजाब के अधिकतर हिस्सों में दाढ़ी रखने का शौंक था..... ये इस्लामिक परम्परा नहीं थी. मुल्ला लोगों के फतवे भी नहीं.... एक जिंदादिली का माहौल था.. लोग दाढ़ी रखते थे.....
कोर्पोरेट सभ्यता का चलन है. – सरकार भी आजकल कोर्पोरेट घरानों के हिसाब से चल रही है. अत: नागरिकों की जिम्मेवारी भी यही बनती है कि वो भी अपना अपेरेंस कोर्पोरेट के हिसाब से रखें. दाढ़ी रखिये – शौंक से ... पर सुन्दर लगनी चाहिए.... जाहिलों की तरह नहीं. एक दिक्कत यहाँ भी है... कि ये सुंदर उसी व्यक्ति पर लगती है जिसकी दाढ़ी में बालों का घनत्व hair density ज्यादा हो... अपने जैसों पर दाढ़ी नहीं – की बाल ४-४ मिमी दूर दूर उगे हों – ये झाडी ही लगते है. अत: उन बालों को रखा भी नहीं जा सकता. कटवाने में ही भलाई है. समस्या शेविंग की - उस कला की फिर खड़ी हो जाती है.
हेयर ड्रेसर (नाइ की दूकान) पर जाने में कोई उज्र नहीं है.... नाहीं कोई दुश्मनी पाल रखी है... रही बात अपने मास्टरजी की तो उनको अब २१ रुपे का कोई मलाल नहीं है .... उन्होंने साइड बाय साइड प्रोपटी डीलिंग का धंधा शुरू कर दिया है ..... और २-४ ग्राहक ही मेरे जैसे बचे है..... पर इन दुकानों पर शेव की दूसरी पारी के बाद जब फुहारे से पानी मारा जाता है और मुंह पूछने के लिए जो तौलिया इस्तेमाल में लाया जाता है – उसको देखते ही घिन्न सी आ जाती है..... ऐसा नहीं है की किसी हरेक नाइ की दूकान पर गन्दा तौलिया ही हो... कई जगह तो ऐसी भी होंगी जहाँ ग्राहक बदलते ही तौलिया भी बदल जाता होगा......
............ छोडो जी, अब दाढ़ी कथा को.. जा ही रहा हूँ बनवाने..... ये काम कल तक मुत्त्वी नहीं कर सकता. हाँ याद आया ... बहुत सी पारिवारिक अडचने भी हैं शेव करने में, जैसे सोम, मंगल, वीर, शनि को शेव नहीं करते. J कुछ कारन रहे होंगे. पता नहीं - दाढ़ी में तिनके वाली बात है.
बहारहाल बहुत झेला आपने मुझे खामख्वाह ....
जय राम जी की.
बढ़िया प्रस्तुति .आभार
जवाब देंहटाएंन आज़ाद न विद्रोही ...अक्सर दाढ़ी में तिनका निकलता है बाबा !
जवाब देंहटाएंजय बाबा बनारस !
वाह क्या दाडी पुराण है
जवाब देंहटाएंजय राम जी की
बडी मुसीबत है भाई! दाढी की बात आये तो दुनिया छोड के सन्यास लेने को दिल करता है।
जवाब देंहटाएंजय राम जी की.
जवाब देंहटाएंjinke pet me dadhi rahi hai agli baar kuchh un par bhi ho jay....sadhuwad
जवाब देंहटाएंdadhi aur itni sundar vivechana... badhiya laga... vyangya ka put aur bhi prabhavshali bana raha hai ise...sundar ... meri ek kavita hai.. padhiyega kabhi...
जवाब देंहटाएंदाढ़ी बनाते हुए घायल होना
नित्य
दाढ़ी बनाना
किसी के लिए
बहुत आम है तो
किसी के लिए
बहुत ही खास
हमारे गाँव में
कई तो ऐसे थे
जो इन्तजार करते थे.... http://aruncroy.blogspot.com/2010/11/blog-post_08.html
chalo na likhte likhte kuch to likha ham isee main khus hai.....
जवाब देंहटाएंsunder likha ....kuch dhadhi baba ki photo bhee laga dete......
jai baba banaras..........
mast.. dhadhi katha !!
जवाब देंहटाएंदाढी की बात लाजवाब बिम्ब प्रयुक्त किये हैं आपने...
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