हम और तुम
यूँ साथ साथ चलते रहे ..
ताउम्र ...
बिना किसी शिकवे शिकायत के...
वक्त का तकाज़ा था, और हम निभाते चले गए.
हम और तुम
बैठे रहे दरिया किनारे...
नयनो की भाषा जब नयन समझते रहे...
हरदय के तार दूर तक खनकते रहे..
कितनी विराट जलराशि थी
दोनों किनारों की बीच ..
और दिलों में - भावनाओं का समुन्द्र ...
वक्त का तकाज़ा था, और हम निभाते चले गए.
हम और तुम
हाथों में लिए वो एन-सीरीज
हम अपने ऑफिस में और
तुम आलिशान उस मॉल में
पढ़ते रहे दिलों में आये तुफानो को.
लूटा दिया अपने दिल के अरमानो को..
उस सुहानी शाम को
तुम भी अपने 'उनके' साथ चल दी
और हम भी अपनी उनके लिए चल दिए ..
वक्त का तकाज़ा था, और हम निभाते चले गए.
तुम भी अपने 'उनके' साथ चल दी
जवाब देंहटाएंऔर हम भी अपनी उनके लिए चल दिए ..
वक्त का तकाज़ा था, और हम निभाते चले गए.
yahi aslee jindagi hai.....
jai baba banaras.......
दीपक बाबा ...ये क्या लिखा है आपने...?????
जवाब देंहटाएंआज के वक़्त का सच .......सच में कमाल का लिखा आपने..आभार
वाह
जवाब देंहटाएंबाबा जी जबरदस्त लिख दिया है आपने
वक्त का तकाज़ा था, और हम निभाते चले गए.
ये ही सच है
तुम भी अपने 'उनके' साथ चल दी
जवाब देंहटाएंऔर हम भी अपनी उनके लिए चल दिए ....
वाह बाबा वाह ....
मन गए गुरु ...यह लेने अच्छी लगीं ....शुभकामनायें !
वक्त का तकाज़ा था, और हम निभाते चले गए.
जवाब देंहटाएंवाह... वाह ....
यही बहुत है कि निभाते चले गए :):) एन सिरीज़ बढ़िया रही
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंबाबा जी .....बहत ही अच्छा लिखा है आपने ।
अस्वस्थता के कारण करीब 25 दिनों से ब्लॉगजगत से दूर था
जवाब देंहटाएंआप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,
aajkal isee ko nibhana kahte hai jee.....
जवाब देंहटाएं:)
वक्त के तकाजे को सही परखा आपने बाबा जी। सही कहा।सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंगहरे अहसास की बात है और वक़्त का तकाज़ा ...
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरती से आपने वक़्त के पलड़े में बात रखी..सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी बक-बक
जवाब देंहटाएंकर लेते हो भाई ||
बधाई ||
वाह दीपक जी अधूरी प्रेम कहानी पर उत्तम रचना...बधाई
जवाब देंहटाएंनीरज
क्या खूब वक़्त का तक़ाज़ा है
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