कलयुग है जी,
आज समय बदल गया है, घर-गाँव छोड़ कर जाने वालों को ‘भिखमंगा’ करार दे दिया गया है... भिखमंगा... गोया १२-१४ घंटे हाड-तौड महनत के बाद भी तमगा मिला भिखमंगे का ... तो क्या जरूरत थी – इतनी कशमकश करने की... क्यों न इस धर्म-जाति वहीन परिवार में जन्म ले लिया जाता... रीढ़वहीन लोग बाप का पता नहीं, दादा का ऐतबार नहीं... किताबें उतेलते फिरते हैं... कहीं परिवार का अता-पता मिल जाए....
मैं तो कहता हूँ – घोर कलयुग...
"रंडियों ने रंडियों को और भिखारियों ने भिखारियों को लताड़ना शुरू कर दिया, नाइ कहाँ नाइ की हजामत मुफ्त में करेगा... पैसे दो मिंया....."
एक मोडर्न सैल्यून में ये बात सुनी थी, .... मैं तो कहता हूँ जी ... घोर कलयुग है...
फोटू आभार : hindustaantimes.com |
ब्लॉग जगत में आने के बाद एक शब्द सुना था – कटहई कुतिया .... पर वास्ता नहीं पड़ा, पर टीवी पर देखा तो मालूम हुआ कुछ कंफुज़न हुई होगी ... कुतिया नहीं... कुत्ते होंगे - कटहए कुत्ते.. जो काले कपडे को देख कर भड़क जाते हैं,.... वैसे लाल कपड़ों को देख कर सांड भडकता है.... साक्षात तो नहीं देखा, पर कई फिल्मो में देखा है... और काले कपडे को देख कर कुत्तों का भडकना भी टीवी पर देखा...
फोटू आभार : hindustaantimes.com |
सत्य लगा – तो मान गए जी, एक ही काली पेंट थी, कल रात तुरंत निकाल कर बाहर फैंक दी..... पता नहीं कब काली पेंट कांग्रेसी देख लें और लग जाए पीटने...
पुरातन काल में ही विद्या और धन अर्जन करने साहसी लोग देशाटन करते थे, नहीं साहेब, देखा नहीं, पर पढा है – सुना है...... .और कुछ न कुछ नया ले कर आते थे, और वो नयी जानकारी या फिर नयी वस्तुएं, गाँव वालों को बताते/दिखाते थे, पर उस समय लगता है कलयुग नहीं होगा – जोन सा मर्ज़ी युग हो – पर कलयुग नहीं होगा....
जरूरी नहीं है कि साहसी लोग ही ऐसी यात्रा करते थे, अंग्रेजी हुकूमत में कुछ लोगों को जबरिया विदेशों में मजदूरी करने भेजा गया जो गिरमिटिया कहलाये...... इनकी बहुत मजबूरियां रही होंगी जो देश से दूर कहीं विदेशों में मजदूरी करने गए......... साहेब, उनका जाना भी व्यर्थ नहीं हुआ, अपने साथ रामायण और भगवत गीता ले गए, और आज भी कई देशों में अपनी भारतीय संस्कृति की छाप उन मुल्कों पर मात्र इन गिरमिटिया मजदूरों की वजह से है...
गिरमिटिया – साहेब, आप लोगों का बाप (क्या कहते हैं, राष्ट्रपिता) भी एक गिरमिटिया था, क्या कहते हैं पहला गिरमिटिया.... गर आज वो जिन्दा होता तो आप उनको भी भिखमंगे के खिताब से नवाज़ देते ....
क्या आप इन्हें भिखमंगे की संज्ञा दे सकते हैं... जी हो सकता है आप इन्हें भिखमंगा कह भी दें, और कह रहे है... पर आप की संज्ञा पर प्रशन चिन्ह लग जाता है... विद्वजन आपको संज्ञाहीन कहेंगे....
फोटू साभार... msn.com |
सौ-सौ जूते खा – तमाशा उछल उछल कर देखते हैं.... जी, यही बात है जो आम हिन्दुस्तानी को अलग करती है... और कुछ न कुछ तो यही हिन्दुस्तानी गुण आपने में भी है... पिछले कई सालों से आप पर जूते पड़ रहे हैं... इसी उत्तर प्रदेश से... क्या कहते हैं ह्रदय स्थल से... और आप को शर्म नहीं... घुस घुस कर वहीँ तमाशा देखने पहुँच जाते हो...
बेशर्मी जब हद से बड जाती है तो बंद बेशर्म हो जाता है.... और गर यही बन्दा गर राजनीति में हो तो कहने ही क्या ... जो नग्न नाच संसद में होता था.... अब सड़कों पर होगा... आप तैयार रहिये.. और जी को कडा कीजिए ये सब देखने के लिए.. बाकी जब गुरु ही इतने हाथपैर चला रहा हो तो चेले कहाँ पीछे हटेंगे....
फोटू आभार : http://www.indianexpress.com |
२०१४ आने में देर नहीं है...
या तो जाग जायो या फिर अभी से सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएँ और गायें,
भारत भाग्य विधाता..
जय हो, जय हो, जय हो.....
जय राम जी ...
बैचेनी जब हद से बड ज़ाती है तो बन्दा बक बक करने लग जाता है...
बाबा जी की जय हो,
जवाब देंहटाएंवैसे आप नहा धोकर कुत्तों के पीछे मत पडो नहीं तो आपको भी काटने दौडेंगे।
बाबा जी
जवाब देंहटाएंकुत्तों से जरा बच के
जय राम जी की
बाबा जी देश भर के भिखारी अब उत्तर प्रदेश में अपने रिश्तेदारों की खोज कर रहे है राहुल बाबा ने बिछड़ो को मिलवाया उत्तर प्रदेश में वोट मिले या न मिले पर सुना है देश के भिखारी इन्हें वोट देने पर विचार कर रहे है पर ये अलग बात है भिकारियो के वोट नहीं होते|
जवाब देंहटाएंवोट तो प्यारे फ़िर भी इन्हें ही मिलेंगे। ऐन टाईम पर कोई ऐसा शोशा छोड़ा जायेगा कि हमारी जनता जनार्दन फ़िर से बेवकूफ़ बनेगी। इन्हें बाप कहलवाने का फ़ार्मूला आता है।
जवाब देंहटाएंई राजनीति के फेर मा ना ही पडो,तो सुखी रहोगे,पैंट भी बची रहेगी !
जवाब देंहटाएंdipakji,
जवाब देंहटाएंbahut achchha lekh, aaj aise hi lekhan kii aavashykta hai, bahut sahi likha hai
shandar lekhan ke liye bahut bahut badhai
बेशर्मी जब हद से बड जाती है तो बंद बेशर्म हो जाता है.... और गर यही बन्दा गर राजनीति में हो तो कहने ही क्या ... जो नग्न नाच संसद में होता था.... अब सड़कों पर होगा... आप तैयार रहिये..
जवाब देंहटाएंसहमत हूँ. बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी?
बहुत ही सटीक व्यंग्य...आभार
जवाब देंहटाएंबचे रहना वरना सी बी आई पीछे पड जायेगी वैसे भी बाबा लोगो की आफत है आहजकल
जवाब देंहटाएंजय बाबा जी की
जवाब देंहटाएंकाले दिलवालों को काला रंग नही सुहाता।
अब आपकी देखादेखी मैं भी अपनी काली पेंट को तलाक दे रहा हूँ। घरबारन को कह दूंगा चाहे बदले में चम्मच भी ना मिले लेकिन शाम तक काली पेंट को घर निकाला दे देना :)
प्रणाम स्वीकार करें
निश्चित ही सटीक व्यंग्य और सार्थक सन्देश !
जवाब देंहटाएंलोकतंत्र के चौथे खम्बे पर अपने विचारों से अवगत कराएँ |
औचित्यहीन होती मीडिया और दिशाहीन होती पत्रकारिता
अपना इलाज कराने जब अमेरिका जाते हैं तब वह भीख मांगना नहीं है? इस बार पाला मायावती से पड़ा है, ऐसे दौड़ा-दौड़ाकर मारेगी कि इटली में जाकर भीख मांगेगे।
जवाब देंहटाएंकुत्तों से ज्यादा इंसानों से डर लगता है ।
जवाब देंहटाएंअरे बॉस
जवाब देंहटाएंआपने तो कमाल कर दिया।
माने की
धोती को फाड़ कर
रूमाल कर दिया।
अरे बॉस
जवाब देंहटाएंआपने तो कमाल कर दिया।
माने की
धोती को फाड़ कर
रूमाल कर दिया।
आज तक लिखी गई आपकी रचनाओं में सर्व्श्रेष्ट्र .... पलायन को अब औपचारिक रूप से भिक्षा की संज्ञा दे दी गई है...
जवाब देंहटाएंआज बाबा अपने तेवर में दिखते हैं।
जवाब देंहटाएंआज बाबा अपने तेवर में दिखते हैं।
जवाब देंहटाएंम्हारे कमेंट को भी काली पैंट समझकर फ़िंकवा दिया क्या? यो ठीक न करया भाई तैने।
जवाब देंहटाएंहमारे पास तो एक काले रंग की लुंगी है यार, डरा दिया आज तो।
जवाब देंहटाएंकलयुग है जी!
जवाब देंहटाएंसच में घोर कलयुग है!!
अब तो कहीं रह के (दूसरे राज्य में) जीना, कमाना भी भिखमंगई की श्रीणी में हैं। जी हम भी तो वही कर रहे हैं जी।
और जो दूसरे देश से इस देश में आ गए ... वो!
अपना इलाज कराने जब अमेरिका जाते हैं तब वह भीख मांगना नहीं है? इस बार पाला मायावती से पड़ा है, ऐसे दौड़ा-दौड़ाकर मारेगी कि इटली में जाकर भीख मांगेगे।
जवाब देंहटाएंयह मेरी टीप कैसे गायब हुई मुझे पता नहीं। काली स्याही से लिखी है इसलिए गायब हो गयी लगती है।
क्या फर्क पड़ता है किसी इस्वी के आने से। ऐन वक्त पर अपने ज़ख़्मों को भुलाना हमारा शगल है।
जवाब देंहटाएंमई भी अजित गुप्ता जी की बातो से सहमत हूँ ! वैसे मैडम इलाज के बहाने बैक की नकदी को निकालने और इधर - उधर करने गयी होगीं ! ऐसा ही लगता है ! यह भी बक - बक ! बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंअब तो हमने भी कबूतरों की तरह आँखें बंद कर ली हैं.. न कुत्तों की खबरें देखना न अपना खून जलाना... अब बंद आँखों में कोई आके दबोच ले तो हरि-इच्छा!!
जवाब देंहटाएंI like your 'Vyang' Deepak ji! Congrats!
जवाब देंहटाएंहा हा! बहुत सालों तक हम भी देश के पश्चिमी भाग में (भीख मांगते) थे। खुदा की नियामत है, अब इस चिरकुट प्रान्त में आ गये हैं कुछ सालों से। :-)
जवाब देंहटाएंबाबा जी की जय हो
जवाब देंहटाएंरमाशंकर जी की कविता याद आ गयी...
मैं भी मरूंगा
और भारत के भाग्य विधाता भी मरेंगे
लेकिन मैं चाहता हूं
कि पहले जन-गण-मन अधिनायक मरें
फिर भारत भाग्य विधाता मरें
फिर साधू के काका मरें
यानी सारे बड़े-बड़े लोग पहले मर लें
फिर मैं मरूं- आराम से
नदी किनारे मेरी चिता दहक कर महके
और मित्र सब करें दिल्लगी
कि ये विद्रोही भी क्या तगड़ा कवि था
कि सारे बड़े-बड़े लोगों को मारकर तब मरा
बेशर्मी जब हद से बड जाती है तो बंद बेशर्म हो जाता है....सार्थक सन्देश !
जवाब देंहटाएंसंजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
वोसे तो राहुल बाबा का परिवार भी सुना है काश्मीर से आया है ... फिरोज का गुजरात से ... तो ये सब क्या हैं ...
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