दिल्ली सहित पाँचों राज्यों में चुनाव समाप्त हो चुके हैं. लड़की की शादी के
बाद घर में जो थकान रहती है – वही नेता लोगों के घरों में पसरी पड़ी है. एग्जिट पोल रिसल्ट सभी टीवी चेनलों पर
दिखाई दे रहे हैं – सभी के अपने अपने दावे हैं – जो दूसरों के दावों पर भारी पड़ना चाहते हैं. जहाँ चार राज्यों में सभी राजनीति पंडित एक सी भविष्यवाणी कर रहे हैं – वहीँ दिल्ली का मसला आने पर सभी के सुर अलग निकलने
लगते हैं.
मेरी दिल्ली
दिल्ली अनेक प्रकार की विभिन्नताएं लिए हुए है जो उसे
बाकि राज्यों से अलग करती हैं. बाकि राज्यों में छाये जाति समीकरणों के अतिरिक्त
यहाँ विभिन्न राज्यों से आये हुए प्रवासी अपने राज्य की क्षेत्रीय पार्टिओं से
अपनत्व रखते हैं. मयूर विहार – द्वारका जैसे विभिन्न सोसाइटी फ्लेट्स दिल्ली को
महानगर की केटेगिरी में रखने की असफल कोशिश करते हैं वहीँ दिल्ली की पुरानी रिहाशी
कालोनियां अपने पुराने मिथ को टूटने नहीं देना चाहती कि यही दिल्ली है. जहाँ सड़क
पानी और यातायात के सिमित साधनों जैसी बुनियादी समस्यों से जूझता दिल्ली का
ग्रामीण इलाका
एक तरफ है तो विशाल क्षेत्रफल में फैली प्रवासी कामगारों की बसावट वाली अनधिकृत कालोनियों में पानी-सीवर की समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं. एम सी डी- दिल्ली सरकार-केंद्र सरकार के अधीन शहरी मंत्रालय, डीडीए जैसे कई निकाय यहाँ के निवासियों के लिए स्थिति को और अधिक पेचीदा बनाते हैं.
एक तरफ है तो विशाल क्षेत्रफल में फैली प्रवासी कामगारों की बसावट वाली अनधिकृत कालोनियों में पानी-सीवर की समस्याएं मुंह बाएं खड़ी हैं. एम सी डी- दिल्ली सरकार-केंद्र सरकार के अधीन शहरी मंत्रालय, डीडीए जैसे कई निकाय यहाँ के निवासियों के लिए स्थिति को और अधिक पेचीदा बनाते हैं.
नहीं रुकेगी ये रफ़्तार
इसलिए यहाँ पर चुनाव में मुख्य मुद्दे सदा डगमगा जाते
हैं और न चाहते हुए भी गौण मुद्दे सामने आ जाते हैं. दिल्ली सरकार की जवाबदेही
दिल्ली में विकास की है और इसी विकास के कारण ही निवर्तमान मुख्यमंत्री श्रीमती
शीला दीक्षित इन चुनावों में वोट मांगती नज़र आयी. परन्तु जब इन विकास के दौरान हुए
घोटालों की बात आती है तो वे इसका ठीकरा कामनवेल्थ ओर्गेनाइज़िन्ग कमिटी पर फोड़
देती हैं. जहाँ ऊँची इमारतें – भव्य मॉल- बड़े बड़े फ्लाईओवर चमचमाती मेट्रो और सड़कें
दिल्ली को विश्व के किसी भी बड़े मेट्रो सिटी में शुमार करते हैं – वहीँ इन चमचमाती सड़कों से उतर आप जब किसी भी कालोनी
में घुसेंगे तो दिल्ली की असली पोल पट्टी यहीं से खुलनी शुरू हो जाती है. राजनैतिक
नेताओं के शरणागत हुए बिल्डर माफिया द्वारा बसाई गयी अवैध बिल्डर फ्लेट्स और अवैध
कालोनियां. गर नई दिल्ली की कुछ कालोनियां और द्वारका जैसे कुछ क्षेत्र छोड़ दिए
जाएँ तो पूरी दिल्ली ही अवैध ढंग से बसी हुई है – जहाँ सीवर और पेय जल के पाइप आपस में मिलकर दूषित
पानी सप्लाई कर रहे हैं. निजीकरण होने से बिजली की स्थिति तो बेहतर हुई है पर एक
वर्ष पहले तक जो दो महीनों का बिल आता था – उतना ही बिल आज एक महीने का आ रहा है. वैभव इतना कि
घर के हर सदस्य के पास गाडी और पार्किग की जगह नहीं – नतीजा अब एक पड़ोसी दुसरे से मुस्कुरा कर नहीं मिलता – वरन घूरकर देखता हुआ जाता है.
चुनावी समर
जनता कांग्रेस शासन के विकास को समझ चुकी है. और
विकास की हांडी इस बार दुबारा चड़ने के लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस नहीं तो दूसरा
कौन ? यह प्रशन यक्ष प्रशन नहीं रहता अगर भाजपा एक साल पहले
चैत जाती – और डॉ हर्षवर्धन के हाथ में दिल्ली की कमान दे दी गयी
होती.
बहुत देर से दर पे आँखें लगी थीं - हुज़ूर आते-आते बहुत देर कर दी .
बहुत देर बाद डॉ हर्षवर्धन याद आये. देर हो चुकी थी. २०११ के ‘कथित’ जनआन्दोलन के नायक अन्ना हजारे ने राम लीला ग्राउंड पर बैठ कर जो खिचड़ी पकाई
थी – वो अरविन्द केजरीवाल लेकर भाग आया जैसेकि समुद्र मंथन में हुआ था. विधानसभा
चुनाव में इमानदारी का ढोल खूब बजाया गया. मानो भारत वर्ष में पहली बार कोई
इमानदार नेता आया हो. इस इमानदारी ने जिस बैमानी से दिल्ली चुनाव का गणित फिट किया
- वह चुनाव शास्त्रियों को चकित करने के लिए काफी है. चुनाव जीतने के हर हथकंडे
अपनाए गए जो प्रचलित दल अपनाते हैं. जाति देख कर टिकट दिए गए. दूसरी पार्टियों से
आये उम्मीदवारों को गले लगा कर उन्हें टोपी पहनाई गयी. जनसंघ और भाजपा के शुरूआती
दौर में जो देशभक्ति के तराने गाये जाते थे वो केजरीवाल टीम द्वारा गाये गए.
दिल्ली से बाहर से आये युवा कार्यकर्ता (जो की पेड बताये जाते हैं) ने नौजवानों और
युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया. अन्ना हजारे का नाम पूरा कैश किया – जब तक अन्ना हजारे ने इसका विरोध किया तब तक देर हो चुकी थी.
निगाहें – परिणाम
६५ प्रतिशत तक वोटिंग दिल्ली में पहली बार हुई है. वोट के लिए लोग घरों से
बाहर निकले हैं – ये वोटों की सौगात किसकी झोली में गिरी है ये रविवार को पता चल जायेगा. और मैं
यह मानता हूँ कि सभी एग्जिट पोल झुठलाये जा सकते हैं.
जी, आम आदमी पार्टी ने झाड़ू से बहुत गुब्बार उड़ा दिया है. चुनावी नतीजे दूषित
होंगे. अभी तक अधिकतर विश्लेषक दिल्ली में हंग असेम्बली की बात कर रहे हैं. पर
क्यों लग रहा है की सत्ता पाने के लिए एनजीओ + केजरीवाल टीम किसी भी हद तक जा सकती
है. ‘आप’ के अधिकतर प्रत्याशी का कार्यक्षेत्र ‘समाज सेवा’ और अब उन्हें लग रहा है इतनी ‘सेवा’ की तो उसका इनाम तो मिलना ही चाहिए. ये एनजीओ की बरात बिना दुल्हे के भी आगे बढने
के लिए तत्पर हैं. बहस सब टीवी वाले एंकरों पर छोड़ दीजिए और आप मेरे साथ रविवार तक कीजिए इंतज़ार. ~ जय राम जी की.
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