मुबारक हो दिल्ली वालों,
आप का आदेश 'आप' के सर माथे
पर.
पर ये क्या 'आप' तो सर झटक कर
आदेश को मिट्टी में मिला रहे हैं.
स्वघोषित ईमानदार केजरीवाल
साहेब दिल्ली की जनता का दीवानापन देख कर घबरा उठे. उन्हें उम्मीद नहीं थी कि झाड़ू
के दम पर इतने विधायक जीत कर आ जायेंगे. जिन्हें आजतक विधान सभा का सही अर्थ तक नहीं मालूम था, विधायक के
दायित्व और कर्तव्यों का बोध तक नहीं था, दिल्ली को सस्ती बिजली, भष्ट्राचार मुक्त
प्रशासन, पक्की सरकारी नौकरी जैसे हसीं ख्वाब दिखाकर विधानसभा पहुँच चुके हैं.
चूँकि दिल्ली ने
खंडित जनादेश दिया है, इसलिए यहाँ की राजनितिक पार्टियों का ये दायित्व बनता है की
बैठ कर बात करें और एक कॉमन प्रोग्राम बना कर दिल्ली को स्वच्छ सरकार दें. जैसा की
किरण बेदी और प्रशांत भूषण जी जैसे कई नेतागण कह rहैं.
पर ‘आप’ इससे इतफाक
नहीं रखती. वो बार बार कह रहे हैं कि हमें विपक्ष में बैठने का जनादेश मिला है.
ऐसा क्यों कह रहे हैं.
गौर किया जाए तो ‘आप’
के अधिकतर विधायक अनुभवहीन हैं. न तो उन्हें प्रशासनिक समझ है और न दिल्ली के विषय
में. अब सरकार बना कर ‘आप’ मुसीबत मोल लेना नहीं चाहते. ‘आप’ को लग रहा था की १५-२०
सीटें आ जाएँगी .... तब जाकर विधान सभा में हंगामा करेंगे जैसा अब तक सड़क पर करते
आये हैं. पर दिल्ली ने ‘आप’ पर कुछ ज्यादा ही ऐतबार कर लिया जिसके लिए केजरीवाल टीम
तैयार नहीं थी.
जिस टाइप के वोटर ने
‘आप’ को चुना है, माफ़ करना वो महीने दो महीने बाद अपने विधायकों के घर पर बिजली के
बिल ले कर आ धमकेंगे. जी, बिजली के बिल कम करवा दीजिए. क्योंकि आपने तो हर विधान
सभा क्षेत्र का अलग से घोषणापात्र जारी किया है. क्षेत्र की जनता को इससे मतलब
नहीं कि किसकी सरकार है ... सरक भी रही या नहीं... उनकी डिमांड तो मात्र इतनी है कि
आप अपना परचा ले कर हमारे घर आये... हमें अच्छा लगा हमने आपको जीता दिया. अब आपने
पर्चे पर जो वायदे किये थे उन पर पूरा उतरना आपका दायित्व है. आप पूरा कीजिए.
इन चुनावों में
कांग्रेस अपनी गति को प्राप्त हुई. समय आ गया है महात्मा गांधी का सपना साकार होने
जा रहा है की कांग्रेस को खत्म कर देना चाहिए. दिल्ली में भाजपा के दौनों हाथों
में लड्डू है. ५-६ महीने बाद फिर से लोक सभा के चुनाव है. गर १-२ दिन तक दिल्ली
में छाये अनिश्चता के बादल नहीं छटें तो लोक सभा चुनावों के साथ साथ विधानसभा के
चुनाव भी तय हैं.
मोदी के ही सहारे
सही, प्रदेश भाजपा एक बार फिर मैदान में दम ठोकने को तैयार दिख रही है. लेकिन
भाजपा को सचेत रहना होगा. जिन ‘शहजादों’ को पार्टी ने टिकेट देकर अपनी मिटटी पलीद
करवाई है – उन्हें किनारे करना होगा. युवा और सामाजिक रूप से परिपक्व कार्यकर्ताओं
को मैदान में उतरना होगा. जिस किसी ने भी अपने बेटे बेटी या दामाद के लिए टिकट
मांगी तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखाना होगा. तभी दिल्ली जैसे राज्य की वैतरणी पार
लगेगी.
‘आप’ के लिए...
एक खूबसूरत नौजवान विदेश से पढ़ लिख कर घर आया. पूरा मौहल्ला खुश. एक से बढ़ कर एक रिश्ते आने लग गए. पर शादी के नाम पर युवक बिगड़ जाता. शादी नहीं करने की ठाने बैठा था. शादी क्यों नहीं करनी – इस पर उसका कोई पुख्ता जवाब भी नहीं था. एक दिन दारु पी कर ही सही अपने मित्र को राज की बात बताई ... कि भाई बेशक मैं ईमानदार हूँ, शरीफ हूँ – पर मैंने कई बार 'ट्राई' किया और हर बार असफल रहा. अब ये तय लगता है कि मैं शादी के लायक नहीं हूँ. चूँकि ईमानदार हूँ इसलिए किसी को धोखा नहीं देना चाहता.भाई, कायर की शराफत और ईमानदारी किसी के किसी काम की नहीं होती ~ जय राम जी की.
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