24 दिस॰ 2013

वो बाबु संभल संभलकर कदम रखता है



दुःख सुख के दो स्तम्भों से
कसी गृहस्थी की रस्सी पर
आत्मबल का आलम्बन लिए
वो बाबु संभल संभलकर कदम रखता है

दुःख स्तम्भ से शुरू हुए कदम  
पड़ोसियों की महंगी गाडी..
बच्चों की कीमती जिद्द
बीबी की आयातित ख्वाईशों को देखकर 
कुछ फिसलता और थोडा झिझकता
पर पूर्वजों के पुण्य से संचित आत्मबल
उसे आलम्बन देता है
दायें-बाएं थोडा झुककर
वो कदम फिर से बढ़ा देता है.

बूढी माँ का जरूरी इलाज़
महंगे होते सामाजिक सरोकार
पैसे से ही फलीभूत होती
बच्चों के शिक्षा की प्रगति.
दफ्तर में बढ़ते फाइलों के अम्बार..
वातानुकूलित कमरों में भी
धधकती रहती सदा अधिकारी मेधा
उसी ताप से स्वयं को बचा
कसी रस्सी पर दिमाग लगा
बिना विचलित हुए
वो कदम फिर से बढ़ा देता है.

बच्चों का उज्जवल भविष्य
पढ़ लिख कर विदेश में नौकरी
कांट्रेक्टर से मिली बढ़ी कमीशन
कुछ फर्जी मेडिकल के बिल
शहर से दूर कहीं बनता फ्लेट का जुगाड़
सुख नामक स्तम्भ सदा लुभाता
कदम फिर डगमगाते लगते –
पर आत्मबल का आलम्बन लिए
वो बाबु संभल संभलकर कदम रखता है.

~ जय रामजी की.

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