5 नव॰ 2011

बकरे की माँ ... कब तक खैर मनाएगी..

तिहाड गाँव के पार्क में घास खा गिनती के दिन गुजारता
१०,५०० रुपये का बकरा..... इसकी कुर्बानी के लिए
जो शक्श्स आएगा वो ५०० रुपे मेहनताना लेगा..
इसका मांस मित्रों और रिश्तेदारों में बांटा जाएगा..
इसका चमड़ा दान दिया जाएगा... मदरसों को
'गरीब' विद्यार्थियों के लिए...

बकरे की माँ ... कब तक खैर मनाएगी..

जी कल रविवार तक और... बस
उसके बाद
उसके बाद कुर्बानी है...


पर हमारे यहाँ तो बकरे की माँ कई सालों तक खैर मनाती है...
जी तुम्हारे यहाँ के बकरे अल्पसंख्यक होंगे न...
अल्लाह उनकी सुनता है... 

अफज़ल गुरु 
अजमल आमिर कसाब 











इन सुसरों का तो कुछ भी काम नहीं आएगा.

तुम देते तो झटका हो पर फ़ाइल पेंडिंग करते हो
हम हलाली पर विश्वास तुरंत फुरंत झटका देते हैं

22 टिप्‍पणियां:

  1. Wah wah....

    Barkre to ye pakistani hai inki asli ma to italy ki rani hai....usko bhi halal karna hoga tab ja manegi id holi aur diwali...

    Jay shree ram

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  2. बकरे की माँ कब तक खैर मनाएगी
    यह कहावत किसने बनाई,दीपक बाबा.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा.

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  3. कई बार,कानून का पालन भी मज़ाक लगता है।

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  4. वध की परम्परा हिन्दू मन्दिरों में भी है। यहां विन्ध्याचल के विन्ध्यवासिनी मन्दिर में भी बलि दी जाती है।
    बलि वाले मन्दिरों में जाने का मन नहीं करता। जाता भी नहीं।

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  5. कुछ परंपराएं ऐसी हैं जिनका हम वर्षों से आस्था के नाम पर पालन कर रहे हैं।

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  6. यह बकरे तो भैंसे हो गए हैं ... और देश के लिए सफ़ेद हाथी

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  7. @ "इन सुसरों का तो कुछ भी काम नहीं आएगा."

    पक्ष विपक्ष दोनों के लिये ये ट्रंप कार्ड की तरह काम आते हैं।

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  8. फिर सवाल उठेगा.....इन बकरों की दावत कौन उडाएगा ? पाकिस्तान कहेगा,पहले उसका हक है !!

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  9. बड़ी कस के मारे हैं ससुरों को!

    साधुवाद स्वीकार कीजिये

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  10. यह हलाली के बकरे हैं तो कटते कटते ही कटेंगे। धीरे-धीरे छुरी चलेगी, सब्र रखिए।

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  11. यथार्थपरक,अच्छी प्रस्तुति !

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  12. बहुत खूब ...
    इन बकरों की माँ कौन है?

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  13. दीपक बाबा...ब्लॉग पर.. मैं जो हूँ पढ़ा.. और यह पोस्ट देखी। कुछ अच्छा नहीं लगा। आपकी भावना भले अच्छी हो लेकिन धार्मिक पर्वों के साथ आस्था जुड़ी होती है। कुर्बानी भी उसी का अंग है। कौन गलत है कौन सही मैं नहीं जानता लेकिन एक धार्मिक पर्व के समय आस्था पर प्रश्न चिन्ह खलता है। एक बात और... नापाक बकरों की कुर्बानी नहीं दी जाती। जो चित्र आपने लगाये हैं वे कुर्बानी के योग्य नहीं है।

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  14. खैर मनाने का आखरी लम्हा आ भी गया...कट


    नीरज

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  15. गज़ब की धार है इस व्यंग में ... अब देखिये ये लम्हा कब आता है ...

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  16. कृपया पधारें व अपने अमूल्य विचारों से अवगत कराएँ !

    http://poetry-kavita.blogspot.com/2011/11/blog-post_06.html

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.