‘जूता’
इव्नेबतुता – बगल में जूता ....... वाला नहीं
जो रिंग रोड मायापुरी फ्लाई ओवर से उतरते वक्त बेदर्द वाहन चालकों से सताया हुआ .. कुचला हुआ ... सड़क के बीचो-बीच पड़ा मिला था ....... वही वाला.
सड़क पर पड़े एक बेकार से जूते को देखकर पता नहीं क्यों मेरे दिमाग में हलचल सी मच गई..... ये जूता अपनी बुरी से बुरी दशा में था.. काले रंग रहा होगा कभी ... फिलहाल मिटटी में लथपथ सा था..– फीता भी था ... जूते के उपर फीते के लिए कुल छ: छेद थे– और फीता मात्र ३ छेदों में ही था....
रिंग रोड पर ट्रेफिक ज्यादा था उसी जगह स्कूटर रोकना मुनासिब नहीं था... अत: थोडा आगे जाकर स्कूटर एक किनारे रोका और वापिस आकर वह जूता उठा कर पटरी पर रख दिया... जूते में सोल भी लगा था – कुछ अटपटा सा लगा.. ‘सोल’....... बचपन में १ साल जूता पहनने के बाद जब घिस जाता था तो मोची से जूते में सोल लगवाया जाता था.. जिससे से उसे अगले १ साले के लिए कुछ जीवन मिल जाता था.
जूता कोई १५०-२०० रुपये की कीमत वाला लग रहा था... जूता उद्योग में आई क्रांति कि वजह से आजकल कोई भी जूते में सोल नहीं लगवाता. क्योंकि जूते सस्ते पड़ते हैं. (ब्रांडेड को छोड़ दें तो). ... पता किस शख्स का जूता होगा? जिस दिन नया खरीद कर लाया होगा – उस दिन शायद नए कपडे भी खरीदें हो... और हो सकता किसी शादी–वादी में जाना हुआ हो.... दो चार लोगों ने पूछा भी होगा.. “क्यों भाई, नया जूता लाये हो”
“कहाँ से लाये”
“कित्ते का लाये” आदि आदि...
यानी इस जूते ने अच्छे दिन भी देखे होंगे... हो सकता उस शख्स ने किसी के पुराने जूतों को हिराकत की नज़र से भी देखा होगा ... तो उस समय यही जूता अपनी पोजीशन पर कितना इतराया होगा... धीरे धीरे ही ये घीसा होगा.... फैक्टरी (या कार्यस्थल) में आने जाने में.... इतवार को कुछ सोद्दा-सट्टा लाने में .... कहीं दस दिन के बकाया वेतन के लिए चक्कर लगाए होंगे. छोटे को जब बुखार हुआ था तो सरकारी डिस्पेंसरी पर चक्कर लगे होंगे. हो सकता है .. कहीं लाल झंडे वाले कम्युनिस्ट यूनियन के चक्कर में पड़ गया हो...... तो पता नहीं लेबर कोर्ट में कित्ते चक्कर लगाए होंगे.
हो सकता है वो शख्स किसी की मय्यत में भी शामिल हुआ हो और ये जूता शमशान या फिर कब्रिस्तान की सैर का आये हों..... खुदा न करे ... वो शख्स कहीं जेबकतरे या चोरी-चाकरी में नप गया हो तो हो सकता है – बड़ी ‘हवेली’ के दर्श भी कर आया हो ... पर ये उम्मीद कम ही दिखती है ... क्योंकि अगर इस जूते का भूतपूर्व मालिक इतना ‘शातिर’ होता तो जूते पर सोल न लगवाता... स्स्सला नया खरीदता.
कुछ समझ नहीं आ रहा...... अत: में जूते को इज्ज़त से पटरी पर रख कर स्कूटर स्टार्ट कर के चल देता हूँ. .. पर मन ही मन उस जूते को याद करता हूँ.... जो इतिहास बने... जिन पर कैमरे क्लिक हुए... जो अगले दिन की अखबारों में सुर्खियाँ बने....... जैसेकि :
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी पर.... ब्रिटेन में – अनाम शख्स का जूता...
जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला पर... अब्दुल अहद जन, निलंबित हेड कांस्टेबल का जूता....
भारत के गृहमंत्री पी चिदंबरम पर.... पत्रकार जनरैलसिंह का जूता......
ये सभी जूते पूजनीय हैं..... वंदनीय है....... हो सकता है अभी कहीं सरकारी 'मालखाने' की इज्ज़त बड़ा रहे हो.
जब मैंने वह जूता इज्ज़त से पटरी पर रखा तो बस एक ही बात मन में आई........ काश उपर उल्लेखित चार जोड़ी जूतों में कोई एक जूता मुझे मिल जाता तो .... संभालकर रख लेता.....सुबह साइकिल ब्रांड २ अगरबत्ती रोज जलाता....
आप सब पत्रकार लोगों से गुजारिश है...... जब भी आप प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, वित्तमंत्री, खाद्यमंत्री, इस सरकार की सर्वेसर्वा कठपुतलीचालक 'राजमाता' या फिर कोई भी मंत्री पद से सुसज्जित व्यक्ति, अगर उनकी प्रेस कांफ्रेंस में जाओ तो कृपा अपने जूते को मौका दो... और जूता मुझे दो........ पूजा के लिए.......
जाते जाते एक बात और याद आ गयी ...... "सत्ता के दलालों को ... जूता मारो सालों को"
जय राम जी की.
Photocourtsey: www.bbc.co.uk/hindi/india/2010/08/100815_omer_shoe_ac.shtml
Dekh kamaal joote ka. pasand aaya yh andaaz.
जवाब देंहटाएंआपकी कल्पना शक्ति को सलाम जो एक पुराना जूते को देखकर इतना कुछ सोच लिए ...
जवाब देंहटाएंऔर हाँ ... जिन चार जूतों की बात आप कर रहे हैं उन्हें पाने के लिए लंबी लाइन लगी है ... कृपया लाइन में लग जाएँ ...
जूता मारो और महान बनो |
जवाब देंहटाएंइस बात का ध्यान अवश्य रखें कि जूता किसी इटालियन कम्पनी का हो… जिससे खाने वाला खुशी-खुशी खाये…
जवाब देंहटाएंसुरेश जी, इत्ता ही बहुत है आपका आशीर्वचन....
जवाब देंहटाएंआपका मेरे ब्लॉग पर दूसरी बार आना, मेरे लिए एक हर्षिल विषय है.
सत्ता के दलालों को ... जूता मारो सालों को"
जवाब देंहटाएंजय राम जी की.
इसे कहते हैं मौलिक लेखन! एक उपेक्षित सी वस्तु पर जाने कितनों की दृष्टि पड़ी होगी लेकिन उस पर ऐसे 'बकबक दर्शन'का प्रकाश कोई दीपक ही डाल सकता है। उम्दा आलेख!
जवाब देंहटाएंसोल लगवाने की खूब कही! 1600 के जूते खरीदे और ठीक 6 महीने 1 दिन बाद एक सोल फट गया। वारंटी थी 6 महीने। दूसरा लेने गया तो वारंटी घट कर 3 महीने पर आ गई थी। श्रीमती जी ने भूतनाथ मार्केट में 200 में सोल लगवाया। मोची ने कहा कि अब पहले जूते टूटेंगे, सोल नहीं। सचमुच पिछले 6 महीने से पहन रहा हूँ। सोल टकाटक है। जूता चमाचम है। ऐसे हुनरमन्द और ईमानदार बूढ़े मोची को सैल्यूट मारने को मन करता है, भले फुटपाथ पर बैठता हो। ...वैसे अब इस तरह के लोग कम ही रह गए हैं और उन्हें पूछने वाले भी कम। इज़्ज़त तो दूर की बात है।
बन्द करता हूँ नहीं तो आप कहेंगे कि यह पगलेट तो कम्पटीशन में बकबकाने लगा :)
गिरिजेश जी, कृपया इत्ते महंगे जूते मत पहना कीजिए.......
जवाब देंहटाएंबिना ब्रांड के खरीदोगे तो मुनाफा जायेगे...... अपने किसी स्वदेश उद्योगपति के पास .. और ब्रांडेड खरीदोगे .. तो भैया पैसा बाहर जाएगा... ......
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जवाब देंहटाएंव्यर्थ पोस्ट
पोस्ट झेलना भी एक मुसीबत
जूता इटैलियन ब्रांड है - कसम से
जवाब देंहटाएंसोल तो लगवाना ही पड़ेगा। चलाना जो है। वैसे सुना है कि राजा के चक्कर में राजा बदलने वाला है। मनमोहक 'राह का काँटा' राउल के लिए निकलने वाला है। ;)
तीन शून्य, एक एक, एक चिह्न, व्यर्थताबोध, मुसीबत और झेलने के बारे में आप स्वय़ं समझें। हम तो नासमझ ठहरे।
ये सभी जूते पूजनीय हैं
जवाब देंहटाएंजूता जूतमपैज़ार भी करता है
फेंकने वाले (सभाओं में) और पहनने वाले जूते में कुछ तो अंतर होता होगा.
ek bechare par bhi itni badia post... kamal hai सत्ता के दलालों को ... जूता मारो सालों को"
जवाब देंहटाएंजय राम जी की.
दीपक जी, जूतों की दुकान खोल लो बहुत चलेगी, आजकल सीजन है, ऐसा जूता बेचना जो पैर में ज्यादा चले, फैंको तो ठीक निशाने पर लगे
जवाब देंहटाएं@ एक बात पता चली है.... सोचा शेयर कर दूं....... सरकार इटालियन ब्रांड के जूते पर ९०% सब्सिडी दे रही है...
जवाब देंहटाएंपर शर्त है...
"इटालियन जूते शोभते उसी शख्स को..
जिसने 'खानदान' की चरणवंदना की हो...
बडी तीखी धार है। जरा संभल के।
जवाब देंहटाएं---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्या आप सच्चे देशभक्त हैं?
बेहद दिलचस्प अंदाज़ में लिखा है जूता पुराण .... मज़ा आ गया ..
जवाब देंहटाएंदीपक बाबू! आपका पादुका पुराण सुनते सुनते और जूता महिमा गुनते गुनते ही मैं समझ गया था कि आप जूते को पानी में फुला रहे हैं, ताकि जब इसके अंदर पानी पूरी तरह पैबस्त हो जाए और जूता फूल कर डबल आकार को प्राप्त कर ले, तब आप इसको दे मारें. इसके दो फायदे हैं निशाना भी सटीक लगता है और चोट भी भरपूर! लेकिन जूते की चमड़े के अलावा भी एक चमड़ा होता है गेंडे की खाल का… उसपर असर होता है कि नहीं या वैज्ञानिक शोध का विषय है!!
जवाब देंहटाएं@सलील जी, मुरीद हो गए हम तो, हम तो जो लिखे - लिखे... आप तो हमरे मन तक जा पहुंचे....
जवाब देंहटाएंहा हा हा,
जवाब देंहटाएंहमें भी टिप्पणी नहीं सूझी थी, इसीलिये लौट गये थे पहले। ये है बैक्बैंचर्स और लेटकमर्स होने का फ़ायदा।
ऊपर वाले सारे कमेंट्स हमारे माने जायें, यानि कि हमारे भी। खासतौर पर सलिल भाई ने जो ’खाल से खाल मिला’ वाली तान बजाई, छा गये भाप्पे:)
बाबा जी, आज पहली बार आपके ब्लाग के दर्शन किये है
जवाब देंहटाएंधन्य हो गया।
और प्रसाद मे मिला जूता पुराण।
मजा आ गया
बढिया व्यंग्य है ।
जवाब देंहटाएंमज़ा आ गया ....वह जूता अब कहाँ है बाबा ?
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