30 नव॰ 2010

एक बोध कथा....

     एक मजदूर को लत लग गयी..... लत (नशा) हर चीज़ की बुरी होती है. सुबह-सवेरे मजदूरी का नागा कर के पार्क में बुद्धिजीवी लोगों के बीच बैठ जाता... जहाँ देश समाज पर चर्चा होती रहती थी... कुछ जवलंत मुद्दे उठाये जाते ........ कुछ राय जाहिर की जाती ... प्रधान मंत्री को ऐसा करना चाहिए...... नेता विपक्ष यहाँ गलत था......  आदि इत्यादि.... पतनशील समाज और गर्त में जा रहा है. सिनेमा का यह रूप हमारी युवा पीडी और हमारे मूल्यों को समाप्त करने पर तुला है..
      वो मजदूर सुबह से लेकर देर दोपहर उन लोगों की बीच बैठा रहता.... खैनी खाता और उनकी न समझ आने वाली बातें सुनता रहता...
    दोपहर बाद उसे दायें–बाएं घूमना पड़ता.... तब उसे कोई भी मजदूरी पर न रखता.... और रात ढ़ले घर आता.... घर वाले थका मांदा समझ कर समय से खाना वगैरह दे कर कुछ न कहते..
    सुबह फिर से वही दिनचर्या....... पर शांत माता सब देख रही थी और समझ भी रही थी...... एक रात कहीं बुद्धिजीवी बैठक में जाने के लिए उसने माँ से कुछ पैसे मांगे तो.... माता फट पड़ी..... ये मजदूरी छोड़ कर बतोले करता रहता है... कब तक मेरे से पैसे मांग कर गुजारा करेगा ?

सही तो कहा है अमरकवि दुष्यंत ने
हर उभरी नस मलने का अभ्यास
रुक रुककर चलने का अभ्यास
छाया में थमने की आदत
यह क्यों?

जब देखो दिल में एक जलन
उल्टे उल्टे से चाल-चलन
सिर से पाँवों तक क्षत-विक्षत
यह क्यों?

जीवन के दर्शन पर दिन-रात
पण्डित विद्वानों जैसी बात
लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
यह क्यों?

जय राम जी की

18 टिप्‍पणियां:

  1. अब दोपहर ढल आई है और लगता है मुझे भी आज की मजूरी नहीं मिलेगी :)

    अच्छी पोस्ट, पहले अपना काम फिर रामजी का नाम.

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  2. बढ़िया पोस्ट !
    अच्छी सीख दी है आपने ...

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  3. जीवन के दर्शन पर दिन-रात
    पण्डित विद्वानों जैसी बात
    लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
    यह क्यों?

    -bahut umda panktiyan padhwa di Dushyant ki

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  4. अरे बाप रे………मैं कहां आ बैठा…… चलो काम पर चलते है।

    जीवन के दर्शन पर दिन-रात
    पण्डित विद्वानों जैसी बात
    लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
    यह क्यों?

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  5. यह क्यूँ? शास्वत प्रश्न है लेकिन जवाब किसके पास है...???
    मजदूर बुद्धिजीवी हो गए तो समझिए हो गया देश का बेडा पार...

    नीरज

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  6. बात सही है मजदूरी छोड कर विद्वानो जैसी बात क्यो की जाये।
    लेकिन मै भी क्या कर रहा हूँ
    ग्राहक को रूकने के लिए कह कर ब्लाग पढने और टिप्पणी
    देने बैठ गया।

    ये भी जरूरी है बाबा जी, कई बार काम को भी टाटा करना पडता है

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  7. @नीरज जी, सही में ..... तभी तो कह रहा हूँ... हो गया देश का बेडा पार.

    @दीपक जी, गलती से मैं भी ग्राफिक डिजाईनर हूँ........... बाकि समझ रहे होंगे.

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  8. जीवन के दर्शन पर दिन-रात
    पण्डित विद्वानों जैसी बात
    लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
    यह क्यों?
    bahut khoob.

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  9. बाबा रे बाब... भागो भैया नहीं तो डांट पड़ जायेगी... यहाँ तो बड़े-बड़े लोग हैं, यदि पूछ ही बैठे तब क्या करूंगी...
    मगर आपने तो सभी को लपेट लिया दीपक जी...

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  10. जरूर बोध कथा का वो मजदूर आज हिन्‍दी ब्‍लॉगर के रूप में हाजिर हो चुका है। पर यह नशा, नशा नहीं शान भी है और यह ब्‍लॉगिंग का मजदूर और किसी चीज से हो न हो परंतु दूसरे के ब्‍लॉग पर अधिक टिप्‍पणियां और फालोवर की संख्‍या, लोकप्रियता देखकर अवश्‍य दिक्‍कत महसूस करने लगा है। इसे बचाओ बेबस बेकसूर ब्‍लूलाइन बसें

    हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग तेरी यही कहानी
    टिप्‍पणी न मिलने से होती है परेशानी।

    दद्दा स्‍व. पंडित कविवर मैथिलीशरण गुप्‍त जी से क्षमायाचना सहित।

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  11. सही कहा दीपक जी, लत लग जाये तो दिक्कत होती ही है। ’क्यों’ तो झगड़े की जड़ होती है, हम तो मान ही लेते हैं यार चुपचाप।

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  12. लतें अच्छी लगती कहाँ और बुरी छुटती कहाँ!!

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  13. दीपक जी, विद्वानोँ सी बात करने के लिये पेट भरा होना चाहिये और फिर तो भाई काम पर निकलना पडेगा.... निकलता हूँ जी बाबा. सुन्दर प्रस्तुति.

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  14. @पूजा जी, स्वागत है.

    @अविनाश (अविनाशी) जी, @दूसरे के ब्‍लॉग पर अधिक टिप्‍पणियां और फालोवर की संख्‍या, लोकप्रियता देखकर अवश्‍य दिक्‍कत महसूस करने लगा है.

    मेरे ख्याल से ऐसा तो नहीं होना चाहिए....... जिसकी जितनी झोली थी.... उसे उतनी खैरात मिली... भैया, बाबा का छोटा सा दामन है ... ज्यादा खैरात की उम्मीद नहीं रखते.

    @ मौ सम कौन - संजय जी : @हम तो मान ही लेते हैं यार चुपचाप।

    और आपकी ये चुप्पी 'यार' को मार डालेगी.

    @सलिल जी, या ये कहें - लते अच्छी लगती हैं......

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  15. जीवन के दर्शन पर दिन-रात
    पण्डित विद्वानों जैसी बात
    लेकिन मूर्खों जैसी हरकत
    यह क्यों ...

    खाली पेट सब कुछ करवा देता है ... अच्छी रचना है ....

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  16. दीपक बाबा जी बहुत सुन्दर पोस्ट.. जीवन का व्यावहारिक ज्ञान देती..

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  17. heheh...ye sahi hai ... aaj kal apna bhi yahi haal yahi hai ....sara kaam dhandha chhod kar dekhiye na aapke blog pe bhatak rahe hain..acchi seekh di hai aapne sir... :)

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.