24 नव॰ 2010

ये नए लोकतंत्र की बयार है

    की-बोर्ड नज़र आ रहा है – मोनिटर नहीं, हाथ मोनिटर को सूझ रहे हैं...... जूझ रहे हैं.... खोज रहे हैं.....  उस धडधड़ाती न्यूज़ के लिए.... जो पेज १ पर कम्पोज हो रही है....  रात्रि के अंतिम पहर में यह पहला पन्ना......... बहुत कुछ खाली है ... इन ख़बरों की तरह ..
कई खबरें गोल है उपरी माले में दिमाग की तरह.....
    कई खबरे बे-पैंदे लोटे की तरह लपक रहीं है... अखबार के फ्रंट पेज पर ...... खाम्खाहं ... बेमतलब.. भ्रष्टाचार ....... घोटाला ....... गडबडझाला ....... मग्गा ला ....... बेकार की जिद छोड़....
     जब  बत्ती बना कर ये ‘नाईट की मेहनत’ पड़ा होगा सुबह बरामदे में....  लोग, इस अंतिम पहर के पहले पन्ने को छोड़ कर पलटेंगे तीसरा पन्ना....... उसके बाद .. देहली एन सी आर, व्यापार, तेरा मेरा कोना .....  ज्योतिष और सेल ..... सभी कुछ तो देखेंगे..... पर नहीं देखते ये सब पहले पन्ने को.....
    इक आदत सी हो गयी है अब .. इन बाबुओं को ....... इन सब कीटाणुओं के साथ जीते हुवे ....... इन विषाणुओं को पीते हुवे..... स्टेंडर्ड अपना-अपना है..... रकम उनकी लाख-करोड़ों में हुई तो क्या हुवा....... अब ‘अपुन’ भी तो हरे गांधी के नीचे नहीं मानता....
     चाय की चुस्की के साथ मैडम भी पूछती है....... सन्डे इव मॉल रोड चलेंगे........ डिकोस्टा क्रिअशन में इटालियन स्टेंडर्ड का माल आया है .... भारी सेल पर .....
     और पहला पन्ना ...... वहीँ कहीं क्रिकेट (खेल) के पन्ने के नीचे छुप सा जाता है ...... ८० पॉइंट बोल्ड की हेडलाईन गौण हो जाती है, बाकि सब हाई लाईट है....... बिना किसी टाईपोग्राफी के .....
     ये नये जमाने की नयी सुबह है.... थोड़ी बहुत कालिमा लिए हुए .... पर सब चलता है, क्या है कि ये नए लोकतंत्र की बयार है - कौन पूछता है सरदार की सरदारी को....... 'कंट्रोल एस' की तरह सब कुछ पुख्ता है राजमाता के ब्रह्मवाक्य की तरह.... 




जाते जाते दुष्यंत जी के शब्द हैं 

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

जय राम जी की 

14 टिप्‍पणियां:

  1. इससे ज्यादा एक कम्पोजर से क्या उम्मीद रखेंगे आप ?

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  2. दीपक जी,
    ऐसा लिखने वाला कम्पोजर भी नेताओं की जूतियां उठाने वाले संपादकों, रिपोर्टरों से बड़ा है।
    दुष्यंत कुमार जी ने ही तो तबीयत से पत्त्थर उछालने की भी बात कही थी, उछाल दिया है आपने।

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  3. आज आप के 'अंत:पुर' के दर्शन हुए। दीपक जी, लगा कि आप अपुन टाइप के ही हैं।
    @ सभी कुछ तो देखेंगे..... पर नहीं देखते ये सब पहले पन्ने को.....
    ये नये जमाने की नयी सुबह है.... थोड़ी बहुत कालिमा लिए हुए .... पर सब चलता है, क्या है कि ये नए लोकतंत्र की बयार है - कौन पूछता है सरदार की सरदारी को....... कंट्रोल एस की तरह सब कुछ पुख्ता ही तो है राजमाता के ब्रह्मवाक्य की तरह....

    अद्भुत।
    इस छोटे से लेख के लिए यही कहना है - घाव करे गम्भीर।
    यह '.......' इतना ज़रूरी है क्या? कई जगहों से हटाया जा सकता है, जरा हटा कर देखिए।

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  4. सुन्दर छोटा सा लेख है ... मेरे लिए थोडा अलग सा ... मतबल हट के ...

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  5. दीपक जी ! दुष्यंत जी ने यह भी कहा है कि
    .
    हो चुकी है पीर पर्बत सी पिघलनी चाहिए
    इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए.

    .
    आपने भगीरथ प्रयत्न करके दिखाया है, लेकिन इस नाले सी मैली हो चुकी गंगा में जब लोकतंत्र विटमिन एम की गोली खाकर सोया है और विटामिन एस के तीखे इंजेक्शन की मार झेल रहा है, पहले पन्ने को भूल जाइए... बिग बॉस की रंगीनी पेज थ्री पर ही सजती है... पहला पन्ना तो तथाकथित बुद्धिजीवियों की मानसिक खुजली का निक्सोडर्म है!!

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  6. @संजय बाबु, इसी प्रकार के कम्पोजर 'बड़े' होकर ही तो चरण वंदना में मस्त हो जाते हैं.

    @गिरिजेश राव जी, का है की जब मुझ मूड की भावनाओं को शब्द नहीं मिलते और बक बक सम्पूर्ण नहीं हो पाती तो '...........' से ही गुजारा करना पड़ता है.

    @चला बिहारी, आपके गृह राज्य में आज फिर एक नए बयार दस्तक दे रही है..... स्वागत कीजिए........ माफ कीजिये.... आपकी टीप से हटकर बात कर रहा हूं, पर क्या है नतीजे आ गए है.

    और हाँ, इस आशा के साथ की 'मानसिक खुजली का निक्सोडर्म' पर प्रकास डालेंगे. ....

    @पूर्वीय जी आज कुछ गोल माल बात कर गए.

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  7. सही कहा जी
    क्या देखना पहले पन्ने को जिसपर वही बेमतलब की खबरें (घोटाला, भ्रष्टाचार)आदि आती हैं। नये जमाने को तो छेडखानी बलात्कार की खबरें भाती हैं।
    ये लोकतंत्र की बयार है।
    पोस्ट अच्छी लगी जी

    प्रणाम

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  8. बहुत सुंदर लेख
    कभी यहाँ भी आये

    www.deepti09sharma.blogspot.com

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  9. @ दीपक बाबा ,
    एक बार सबेरे देखा कुछ समझ नहीं आया ! दुबारा आया ....
    क्या क्या लिख देते हैं लोग ...सोंचते हुए जाने ही वाला था कि मो सम कौन पर नज़र पढ़ गयी ... तिबारा पढ़ा तो दिमाग कि बत्ती जली ! अरे भाई कम्पोजर , एडिटर , प्रेस मालिक और शायद रात में चायवाला भी तो है !

    एक दिन रात में आते हैं आपकी प्रेस में.... फिर समझने कि कोशिश करेंगे दीपक बाबा को !पता नहीं चाय मिलेगी या नहीं ? शायद हम जैसे भी कुछ समझ जाएँ !
    मस्त लिखते हो दीपक बाबा !
    आज तो लगा कि प्रेस से होकर आये हैं ...:-))
    शुभकामनायें

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  10. बिहार में बही शीतल बयार पर आपकी टिप्पणी का शुक्रिया.. निक्सोडर्म वाली बात फिर कभी..भूल जाता हूँ.. याद दिला देंगे..

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  11. बाबा जी,
    पहले पन्ने पर होता ही क्या है
    रोचक जानकारी तो पेज 3 पर होती है
    हा हा हा

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  12. कैसी मगज़ीन है दीपक जी आपकी .....?
    साहित्यिक या राजनितिक .....?

    @ कई खबरें गोल है उपरी माले में दिमाग की तरह.....
    कई खबरे बे-पैंदे लोटे की तरह लपक रहीं है... अखबार के फ्रंट पेज पर ...... खाम्खाहं ... बेमतलब.. भ्रष्टाचार ....... घोटाला ....... गडबडझाला .....

    इनसे तो यही लगता है कोई समाचार पत्र है .....

    @देहली एन सी आर, व्यापार, तेरा मेरा कोना ..... ज्योतिष और सेल ..... सभी कुछ तो देखेंगे..... पर नहीं देखते ये सब पहले पन्ने को.....
    हम तो देखते हैं पहला पन्ना .....
    हाँ तीसरा भी .....

    @ चाय की चुस्की के साथ मैडम भी पूछती है....... सन्डे इव मॉल रोड चलेंगे........ डिकोस्टा क्रिअशन में इटालियन स्टेंडर्ड का माल आया है .... भारी सेल पर .....

    ओये होए .....मैडम की फोटो सोतो भी लगा देते ......!

    और आपकी लेखनी पर .....
    सुभानाल्लाह ......!!

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  13. अबे, हमारा ही मजाक उड़ा रहे हो दिल्ली वाले मिलकर? दोस्त शायद इसीलिये होते हैं।
    आज के बाद सिर्फ़ वाह-वाह, बहुत अच्छे, बहुत खूब वाली टिप्पणियां ही करेंगे।

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  14. @हरकीरत जी, काहे की मग्जीन - बक बक है बस...... बैठे बैठे सोचते रहते है ... कौन इस समय का कर रहा होगा.

    @संजय जी (मौ सम कौन), मीठा मीठा में कुछ तीखा तीखा मसाला भी होना चाहिए........ हा हा हा. बुरा मत मानना दोस्त.......

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.