14 अग॰ 2011

हिमाकत दरख्वास्त की ....... आज़ादी का सपना अधुरा ही रहेगा.


सरदार मनमोहन सिंह
वजीर-ऐ-आज़म..
हुकूमत ऐ हिन्दुस्तान 

सतश्रीआकाल
ज़नाब, राजस्थान सूबे के उतरी हिस्से में अलवर जिला है और उसमे तहसील मुण्डावर के गाँव मानका में पाकिस्तान (तत्कालीन हिन्दुस्तान के उत्तर पश्चमी सरहदी जिले - बन्नू) से आये कुछ परिवार आपसे दरख्वास्त करने की हिमाकत करते हैं....

हिमाकत अलफ़ाज़ कुछ अजब लगेगा...... पर जनाब मुल्क के हालातों को देखते हुए, अपने हक की बात करने को हिमाकत ही कहेंगे. १४-१५ अगस्त १९४७ की आधी रात को जब दुनिया सो रही थी तो हमारे मुल्क के मुहाफ़िज़ जाग कर मुल्क की एक नयी तत्बीर लिख रहे थे... और हम लोग उस समय कोई माँ की गोद में और कोई बाप की उंगली थामे लाहोर का बाघा बोर्डर पार के इस नए इलाके में भूखे प्यासे .... १ जून के भोजन और रात बिताने के लिए आशियाना ढूंढ रहे थे.... जनाब , भरे पूरे खानदानी लोग मात्र ३ तार के जनेऊ की रक्षा हेतु वहां से चल पड़े थे... की जब हालात ठीक होंगे तो वापिस आ जायेंगे.... खाली हाथ चले ..

जनाब, मेरे ख्याल से आप भी उनमे से एक रहे होंगे.... जो चकवाल जिले से अपने खानदान के साथ चले होंगे..
आपको इस लिए याद दिलाया जा रहा है ... कि आप हम में से एक है .... और हमारी मुश्क्लातों को समझते होंगे... जनाब इधर कई जगह भटकने के बाद हमारे लोगों को मुस्लिम खानदानो द्वारा छोड़ी गयी जमीन पर कब्ज़ा दिया गया...  ताकि हमारी अपनी छोड़ी गयी जमीन के बदले कुछ भारपाई हो सके.

मालिक, पिछले ६० सालों में हमने अपने को इस इलाके की रवायत के अनुसार बदला और एक पीड़ी बीतते बीतते हम यहाँ पर स्थिर हो  गए ... पर एक बार फिर विस्थापन के काले बादल हम पर मंडराने लगे है. ये इसलिए कि इस इलाके की राजधानी से दूरी मात्र १०० मील के करीब है ... और जैसा की बाकि सूबों में हो रहा है - यहाँ भी जमीन सरकार दूसरी विकास योजनाओं के लिए कब्ज़े में लेने जा रही है.  ये न हो...... 

जनाब .... इस हालत में कि हम लोग मात्र कृषि पर ही निर्भर है ... और यही हमारा रोजी-रोटी का जरिया है... हमें न उजाड़ा जाए.... कल आप लाल किले से जब भाषण देंगे तो बीते कल पर एक  कदम पीछे मूड  कर जरूर देखना - और कुछ सोचना..

तब की हालातों को... आप भूले नहीं होंगे..  कहीं देश आज फिर ऐसे किसी मोड़ पर नहीं हैं .... विभाजन का दर्द जिस पीड़ी ने भोग था... एक एक कर के मर गयी - खप गयी और अपने साथ तमाम किस्से कहानियाँ ले गयी ....... आने वाली नसले उस दर्द को दुबारा न भोगें .... ऐसी व्यवस्था करनी होगी....  विभाजन के दर्द को जनाब सआदत अली मंटो ने कुछ इस तरह बयां किया था  
रिआयत 
'मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो'
'चलो, इसी की बात मान लो, कपडे उतार हांक दो एक तरफ'
उलाहना 
'देखो यार तुमने ब्लैक मार्केट के दाम भी लिए और ऐसा पेट्रोल दिया कि एक दूकान भी नहीं जली' 
मिस्टेक 
छुरी पेट चाक करती हुई नाक के नीचे तक चली गयी. इजारबंद कट गया . छुरी मारने वाले के मुंह से तुरंत अफ़सोस के शब्द निकल '... अल्लाह ... गलती हो गयी'
पठानिस्तान
'खो, एकदम जल्दी बोलो , तुम कौन ए?
'मैं .... मैं ....'
'खो शैतान का बच्चा, जल्दी बोलो इंदु आय या मुसलमीन'
'मुसलमीन'
'खो, तुम्हारा रसूल कौन है '
'मुहम्मद खान'
'टीक है जाव' 
घाटे का सौदा
दो दोस्तों ने दस-बीस लड़कियों में से एक चुनी और ४२ रुपे देकर उसे खरीद लिया. रात गुज़ार कर एक दोस्त ने पूछा 'तुम्हारा नाम क्या है ?'
लड़की ने अपना नाम - जीनत बताया तो वो भन्ना गया ...'हमसे तो कहा गया था कि तुम दुसरे मज़हब की हो.'
लड़की ने जवाब दिया, उसने झूठ बोला '
या सुनकर वह दौड़ा दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा 'उस हरामजादे ने हमारे साथ धोका किया है, हमारे ही मज़हब की लड़की थमा दी. चलो वापस कर आयें .
किस्मत 
'कुछ नहीं दोस्त, इतनी महनत करने पर सिर्फ एक टीन  हाथ लगा था, पर उसमें भी सूअर का गोष्ट (चर्बी) निकली...
मालिक किसानो के हाथों से जमीन न छीने .......  नहीं तो आज़ादी का सपना अधुरा ही रहेगा.

9 टिप्‍पणियां:

  1. भाई लगा कि खलील जिब्रान को पढ़ रहा हूँ...

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  2. अरुण जी, ये ६ शोर्ट स्टोरी ........ सआदत हसन मंटो की हैं...

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  3. दर्दमंदो की हकीकत बयान कर दी आपने, 1947 के बटवारे का दर्द जिसने झेला है वही जानता है उस वक्त के हादसे। सरदार जी को 47 विस्थापितों के लिए सोचना चाहिए।

    मंटो ने सच्चाई लिखी है।

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  4. विचारणीय! एक नर्क से गुज़र चुके लोगों के लिये दूसरे नर्क की आशंका कितनी भयावह होगी! हे राम!

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  5. स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,

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  6. स्वतंत्रता दिवस की शुभकानाएं


    मंटो के ये जुमले अब भी हिला कर रख देते हैं...इंसानी दरिंदगी की जीती जागती मिसाल हैं ये...

    नीरज

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  7. बीते हुए कल से आज की कहर -आश्चर्य कर दी ! स्वतंत्रता दिवस की बधाई !

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  8. १४-१५ अगस्त १९४७ की आधी रात को जब दुनिया सो रही थी तो हमारे मुल्क के मुहाफ़िज़ जाग कर मुल्क की एक नयी तत्बीर लिख रहे थे... और हम लोग उस समय कोई माँ की गोद में और कोई बाप की उंगली थामे लाहोर का बाघा बोर्डर पार के इस नए इलाके में भूखे प्यासे .... १ जून के भोजन और रात बिताने के लिए आशियाना ढूंढ रहे थे.... जनाब , भरे पूरे खानदानी लोग मात्र ३ तार के जनेऊ की रक्षा हेतु वहां से चल पड़े थे... की जब हालात ठीक होंगे तो वापिस आ जायेंगे.... खाली हाथ चले ..

    जनाब, मेरे ख्याल से आप भी उनमे से एक रहे होंगे.... जो चकवाल जिले से अपने खानदान के साथ चले होंगे..
    आपको इस लिए याद दिलाया जा रहा है ... कि आप हम में से एक है .... और हमारी मुश्क्लातों को समझते होंगे... जनाब इधर कई जगह भटकने के बाद हमारे लोगों को मुस्लिम खानदानो द्वारा छोड़ी गयी जमीन पर कब्ज़ा दिया गया... ताकि हमारी अपनी छोड़ी गयी जमीन के बदले कुछ भारपाई हो सके.

    मालिक, पिछले ६० सालों में हमने अपने को इस इलाके की रवायत के अनुसार बदला और एक पीड़ी बीतते बीतते हम यहाँ पर स्थिर हो गए .
    jaag monu jaag.....

    jai baba banaras.....

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  9. क्या छवि बरनों आज की, भले बने हो नाथ !
    तुलसी मस्तक तब नबे धनुष बाण ल्यो हाथ

    कुछ और मत समझना....यह कमेन्ट इस पोस्ट के लिए नहीं बल्कि आपके नए फोटो के लिए है बाबा !

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.