27 अग॰ 2010

दिल्ली में हमारी लड़ाई लड़बे नया सिपईया आया है..


“बापू बापू बाहर निकालो - मैदान में आ”

“अरे का हो गया कलूया, काहे इत्ता हल्ला कर रहा है” दमलू अंदर से चिल्लाया ....

बापू गाँव के बाहर वाले मैदान में सभी लोग इकठ्ठा हैं... कह रहे हैं ... हमार नया सिपईया आया है.. दिल्ली में हमारी लड़ाई लड़ेगा... हमे दो बक्त की रोटी दिलाएगा।

बुडे दमलू की काले चेहरे और पकी चमड़ी में अंदर धंसी भावहीन आँखों में ... दो आंसू टपक आयी। ........

कलुवा चिंता में पड़ गया.. बापू तो तब भी नहीं रोये थे.... सरकार ने बड़ी फैक्ट्री के लिए जमीन ले ली थी. ३-४ दिन पुलिस से पिटने के बाद ... चुपचाप मजदूरी करने उसी बन रही फैक्ट्री में ठेकेदार के पास चले जाते थे. ........ आज बापू की आँखों में आंसू कैसे छ्हलक गए।
रे कलुवा, मेरे पिताजी जी बताते थे.. उस जमाने में एक सिपाही जरूर था .... एक धोती पहन कर ... और हाथ में एक लाठी ले कर आया था ... हमारे परगने में ...... वो जरूर दिल्ली जा कर हमारी लड़ाई लड़ा था. उसके बाद तो कोनों सिपईया नहीं आया ............ बस व्यापारी आये .......

कलुवा, अब तो ऐसे खद्दरधारी को देख कर चिंता हो जाती है............ काहे दिल्ली छोड़ कर हमारे गाँव आया है........... अरे कलुवा...... ई हमका का रोटी देगा......... जो खुद ही मांगे निकला है........ जो खद्दर पहिन कर ......... खुद हमारे जंगल – जमीन पर निगाह रख रहा है........... उ का हमका रोटी देगा ......... उ का हमरी लड़ाई लड़ेगा. ...................... बेटा ई लोग राज करने के लिए जनम लिए है ....... कोनों गरीब की लड़ाई थोड़ी लड़ेंगे.

छटपटाहट ...........
कितनी उस बीज की रही होगी......
जो किसी गरीब स्त्री की कोख में पनप रहा होगा
कितनी इर्ष्य से सोचता होगा.............
वहाँ एसी कमरे में बलशाली राजनीतिक स्त्री
के कोख में स्थापित होते बीज के बारे में
जो ९ महीने बाद जनम लेकर ...
२० वर्ष बाद देश की सत्ता का ...
हक़दार बनेगा.....
और
में पूर्ववर्ती बीज की तरह ......
फिर से खेतों में जोता जाऊंगा.
फिर में २ जून की रोटी को तरसूंगा

......... और उ आएगा मेरे गाँव ...
सिपाहिय बन के
मेरी २ जून की रोटी की आस लेकर
बीज-बीज में फर्क कैसे हो जाता है ?
..........................

कुछ कीजिये बाबु साहिब....... कुछ तो कीजिये.............. कल गाँव के गाँव, जमीन से बेदखल हो कर, ललचाई और आक्रोश से भरी इन आसमान छूती इमारतों....... महंगी गाड़ियों........... को भूखे पेट देखें ......... कुछ गलत कदम उठाये .............. उससे पहले कुछ कीजिए...............

फोटो : दी हिंदू के साभार............................

13 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती ,राहुल गाँधी से पहले मुझे भी उम्मीदें थी लेकिन जनहित में एक जन शिकायत मंत्रालय की स्थापना के लिए जब इस तथाकथित युवाओं के अगुआ से मिला तो मेरी अंतरात्मा ने मुझसे कहा की ये एक नंबर का ड्रामेबाज है अगर ड्रामा करनी है तब तो इसके साथ चल सकते हो और अगर जमीनी स्तर पर कुछ काम करना है तो इसके साथ चलने का कोई फायदा नहीं होगा ,इस ढोंगी ने महंगाई और कोमंवेल्थ में खुलेआम भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक बार भी कुछ भी सार्थक करने की पहल नहीं की और अपनी रजनीतिक रोटी के लिए उड़ीसा पहुँच गया आदिवासियों का आवाज बन्ने ,लेकिन इसे पता नहीं की अब लोग इसे और सोनिया गाँधी को पूरी तरह जान चुके हैं की देश की दर्दनाक अवस्था इसी मां बेटे ही देन है ...

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  2. बेबाक प्रस्तुति...शब्द और भाव दोनों विलक्षण...वाह...
    नीरज

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  3. bhukhe pet ko koi nahi dekhata baba ji sab ko paisa dikhayi deta hai paisa

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  4. ese hi likhate rahate kaya pata koi ese hi padh ke sikh le or es sesh ka sipahiya ban jay or humare liye lad sake

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  5. बहुत खूबसूरत पोस्ट दीपक जी।
    ’ई हमका का रोटी देगा’
    सही सवाल एकदम।

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  6. उम्दा व सार्थक लेखन के लिए बधाई ।

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  7. बिल्कुल सच.. सिर्फ़ व्यापारी

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  8. सच कहा, कुछ करने की कड़ी आवश्यकता है।

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.