1 अक्तू॰ 2010

फिजा में तैर रहे थे कुछ हर्फ़ महफूज़ से


फिजा में तैर रहे थे कुछ हर्फ़ महफूज़ से
दिल्लगी से मैंने छुए और -
हाथ में आये तो दास्तां बन गए.
कहीं हीर रांझा लिख दिया
और कहीं
सोहनी ते महिवाल लिख दिया.

कहीं कब्रों से उठ बैठा बुल्लेशाह...
इक नई इबारत पढ़ने के लिए.
इक नई इबारत गड़ने के लिए.

वो रांझा आज भी मारा फिरता है .
अपनी हीर की तलाश में.
जो मशरूफ है अपनी जिंदगानी में
अपनी जवानी में..
तख़्त हजारे को याद कर के
वो आज भी रोता है

हीर अब  चेटिंग से
रोज इक नई दास्तां बनाती है.

13 टिप्‍पणियां:

  1. दिल्लगी से मैंने छुए और - हाथ में आये तो दास्तां बन गए.
    आपकी रचना चोरी हो गयी ..... यहाँ देखे
    http://chorikablog.blogspot.com/2010/10/blog-post_8465.html

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  4. जनाब इतना सुन्दर लिखते ही क्यों है की चोरी हो जाये। आखिर चोर भी इंसान है बेचारा। मुझे तो सच हँसी आ रही है।

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  5. चोर तो चोरी करेगा ही. हमारे भी ब्लाग पर जनाब पधारे थे.आखिर कविता में दम था तभी ना. बाबा की बकबक है ही इस तरह की कि किसी की भी नजर लग जाय. बहुत सुन्दर कविता.हीर को भी आरकुट वालों ने अपने जाल में फंसा रखा होगा. बेचारा रांझा.....

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  6. यह नये ज़माने की चेटिंग करने वाली हीर है

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  7. बाबा जी,
    शुक्र है हरकीरत हीर जी ने आपकी ये पोस्ट नहीं पढ़ी, नहीं तो आपकी खैर नहीं होती...

    जय हिंद...

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  8. अच्छा तो ये बात थी ......
    खुशदीप जी आप एक मेल कर देते तो हम खैर लेने पहले आ जाते .....हा...हा...हा....!!

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  9. कौशल जी, सक्सेना जी, उपेन्द्र जी और शरद जी, आपका ये प्यार ही तो कुछ न कुछ बकने को मजबूर करता है.

    पाण्डेय जी, खुशदीप जी और हरकीरत ही आपका आभार - पहली बार मेरे ब्लॉग पर विजिट किया है.

    बाकि चोर भाई - छोटे ब्लोगर है - वैसे ही कम लिखते हैं - वो भी आप ले उड़ोगे तो हम क्या करेंगे.

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  10. दीपक जी आई तो थी आपकी खूबसूरत नज़्म देख कर पर बीच में खुशदीप जी की टिपण्णी की ओर ध्यान चला गया और आपकी नज़्म की बात अधूरी ही रह गयी ....

    फिजा में तैर रहे थे कुछ हर्फ़ महफूज़ से
    दिल्लगी से मैंने छुए और -
    हाथ में आये तो दास्तां बन गए.
    कहीं हीर रांझा लिख दिया
    और कहीं .....

    दिल्लगी भी यूँ की तूने रान्झया ...
    तू अपनी बात भूल गया
    चैटिंग की बात कह, हीर बदनाम कर गया ......

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  11. दिल्लगी भी यूँ की तूने रान्झया ...
    तू अपनी बात भूल गया
    चैटिंग की बात कह, हीर बदनाम कर गया ....



    जहां रांझा इक पायल कि झंकार पर दोड़ता चला आता था.
    अब हीर बज़ करके ओरो को बुलाती है.

    ये नए ज़माने कि बात है.

    हरकीरत जी,
    मेरे ख्याल से ये ठीक है न.

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बक बक को समय देने के लिए आभार.
मार्गदर्शन और उत्साह बनाने के लिए टिप्पणी बॉक्स हाज़िर है.